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सम्यग् प्रमाद रहित सेवन कर सद्भाग्य के भागीदार होके अंत अक्षय सुख संपादन कर सकता है.
२४ वैरीका विश्वास करना नहि.
विश्वास नहि करने योग्य मनुष्यका विश्वास करनेसे बडी हानि होती है, इस लिये पहिलेसेही खबरदार रहेना कि जिससे पीछेसे पश्चाताप नहि करना पडे. काम, क्रोध, मद, मोह मत्सरादिको अंतरंग शत्रु समझकर तिन्होंका कबीभी विश्वास सच्चे सुखार्थीको करना योग्य नहि है. सर्वज्ञ प्रभुने पंच प्रमादोंको प्रबल शत्रु कहे है.
जिस्के योगसे प्राणी प्रकर्षकर स्वकर्तव्य से भ्रष्ट हो यावत् बेभान होता है सोही प्रमाद कहा जाता है. मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा यह पाच प्रमाद है, और यह पांचों से एक हो तो भी महा हानिकारी है, और जब पाचों प्रमादों के वश जो मनुष्य पड गया हो उस्का तो कहेनाही क्या ?
मद्यपानसे लक्ष्मी, विद्या, यश, मानादिकी हानि होती है सो जगत् प्रसिद्ध है.
विषय विकारके ताबे होनेवाला बडा योगीश्वर हो, ब्रह्मा हो तोभी स्त्रीका दास बन जाता है और हिम्मत हारकर एक अबलाकामी दीन दास बनता है यही विषयाघताका फल है.
कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ यह चारोंकी चंडालचोकडी कही जाती है. तिन्हका संग करनेवाला यावत् तिस्में तन्मय होकर वा हुवा क्रोधाध यावत् लोभाध कुछभी कृत्याकृत्य हिताहित देख सकता नहि. कषाय - कलुषित मति फिर कुछ औरही नया देखाव देती है. बूढा है पर बालककी तराह और पंडित है पर मुर्खकी तरह यावत् मूलग्रस्तकी मुवाफिक विपरीत - विरुद्ध चेष्टा' करता है, जिससे तिस्का वडा लोकापवाद प्रसरता है. कषायांचा