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( १०५) वडे कोइ अन्यने सानमां समजावती होय तेम पळी हृदयथी तो कोइ वीजानु ध्यान [ चितवन ] करती होय, एवी स्त्रीनी चंचळताने धिकार पडो. स्त्रीओ प्रायः कपट नीज पटी होय छे.
(१७७ ) जो मन वैराग्यना रंगी रंगायलं न होय तो दान, शील, अने तप केवळ कटरुपज थाय छे. वैराग्य युक्त करेली सर्व 'धर्म करणी कल्याणकारी थाय छे. माटे जेम बने तेम पैराग्य भावनी वृद्धि करवी युक्त छे. ते विना अलुणा घान्यनी परे धर्मकरणीमां हेजत आवती नथी, वैराग्य योगे तेमा भारे मीठाश आवे छे.
(१७८ ) अभिनव अध्यात्मिक शास्त्रो वांचवाथी सहज वैराग्यंनी वृद्धि थाय छे.
(१७९ ) मैत्री, मुदिता, करुणा अने मध्यस्थ एवी चार भावनाओगें संयमना कामीए अवश्य सेवन कर जोइए.
( १८० ) जगतना सर्व जंतुओ आपणा मित्र छ, कोई पण आपणा शत्रु नथी, ते सर्व सुखी थाओ, कोइ दुःखी न थाओ, सर्वे सुखना मार्गे चालो एपी मतिने मैत्रीभावना कहे छे.
(१८१ ) सदगुणीना सद्गुणो जोइन चित्तमा राजी थव. जेम चद्रने देखीने चकोर राजी थाय छे, अथवा मेधनो गरिव सांभळीने मोर राजी थाय छे, तेम गुणीने देखी प्रमुदित थq, अंत:करणमां आनंदनी उर्मीओ ०४ तेनुं नाम मुदिता भावना कहेवाय छे.
(१८२ ) कोइ पण दुःखीने देखी दया दिलथी शक्ति अनुसारे तेने सहाय करवी तेमज धर्म कार्यमा सीदाता साधी भाइने योग्य आलंबन आप तेनु नाम करुणा भावना कहेवाय छे.
( १८३ ) जेने कोइ पण प्रकारे हितोपदेश असर करी शके नहि एवा अत्यंत कठोर मनवाळा जीव उपर पण द्वेष नहि करतां तवाथी दूरज रहेवू तेनुं नाम मध्यस्थ भावना कहेपाय छे.