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86 ] है । इम अवस्था मे उसके लिये तुम्ही मबमे मुसद बन्नु हो ।' बहुत दिनो के प्रवास के वाद नायक घर लौटा । उसे नायिका की सबी रोती हुई मिली । गेने का कारगा पूछने पर वह बताती है कि दुराशय । मैं इनलिए रोती हूँ कि तू विवाह करके प्रवास को चला गया और उस बाला ने विरह रोग सह न पाने के कारगा, म्बन्ध होते हुए भी कुए मे कूदकर आत्महत्या कर ली। एक दूती नायक को बनाती है कि तुम्हारे गुणो द्वारा चुराये गये मन वाली नया विन्ह के कारण अति कृशकाय, काम द्वारा प्राक्रान्त, वह तन्वङ्गी तुम्हारी अनुपस्थिति मे उद्विग्न होकर सभी मखियो को तिरस्कृत करती है ।३ नष्ट जीवनेच्यावाली कम्बुग्रीवा एक नायिका विरह मे इतनी तापित हैं कि उसे शिशिर ऋतु के ठण्डे दिन भी खोलने बाले लग रहे हैं। प्रवामी नायक के विरह मे हमी छोडकर उभयपक्षाघात से अस्थिर रुदन के कारण अवरुद्ध गले वाली नायिका ने मखियो का भी रुलाते-रलाने कण्ठावरोध कग दिया है।
विरहज्वर से पीडित नायिका शीतदायक वस्तुओं को भी नहीं मह्न कर पाती । वह गत मे भोजन को मू घती भी नहीं
गाह प्रोग्रग्बड कमल पोलइय ण सहए जलद्द पि ।
प्रोवट्टिएहि प्रोग्रायवे वि प्रोसिंहए ण मा असणं ।।1-130-162 ।। 'क्मलो को नही सू घनी, अगो मे लगे हुए कपूर को भी नहीं सहन कर पाती । खुशामद करने पर भी मायकाल वह भोजन को मू पती तक नहीं ।' इतना ही नहीं केले की छाल एव क्मल पुप्पो की गैया भी उसके लिये केवाच के समान दुखदायक है. विम्नर पर वह विजली की तरह अस्थिर होकर तडपती रहती है
कयनी छल्लि छकुइमम्बुजद्दि पि यु छुइ मुगइ।
लिएरण छदटल पिया तेरा विणा छटचलण छप्पण्णा 113/20124
'विजली के समान तडपती हुई अस्थिर गतिवाली एव विदग्ध प्रिय के द्वारा चली गयी प्रिया, उसके विना केले की छाल एवं कमल की शैया को भी केवाच के समान दुखदायी मानती है ।'
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दे० ना0 मा0 1134136 वही 1146147 वही 11961112 वही 11891105 वही 111101142