________________
___84]
एक सकेत प्राप्ता पीन पयोधरा बाला गोदावरी हृद की ओर अभिगार के लिए जाती है। कुछ स्थलो पर हेमचन्द्र ने नायिकानो के स्तनो की उपमा चकवाय पक्षियो मे भी दिया है । एक स्थान पर वेश्याग्रो के मौन्दयं की भर्त्सना करते हुए हेमचन्द्र तरुणो को उनसे बचने की सलाह देते हैं
मूरिप्रसूरणासणमूलाए लिहिन मूइगण्डाए । मयरदय सूरगे मा त मलहोव्व रे पडमु ।।
'यन्त्र की पीडा नथा सूरन के भोजन के समान पूर्वानात मन्जरी महश कपोलो वाली तथा कामदेव के दीपक के समान प्रज्वलित वेश्या (के जाल) मे (हे तमण 1 ) पतिगे के समान न पड।' इसी प्रकार गुजरात के कच्छ नामक स्थान की कुलटायो या वेश्याग्रो के कटाक्ष का वर्णन करते हुए हेमचन्द्र उपदेशात्मक स्प मे कहते हैं
कूसारखलन्तपनो के उकए पहिन मा भमर कच्छे ।
ज केलीए कूणिय पेच्छिपके पाए पउसि पामेमु ।। 2147144 ।। 'पथिक तू गढ्ढो से युक्त एव किचडेले कच्छ के मार्गों पर भ्रमण मत कर, वरना कुलटारो की ईपन्मुकुलित दृप्टि द्वारा किये गये कटाक्षो के जाल में जा पडेगा।'
__ मादक सौन्दर्य चित्रो से युक्त, उपर्युक्त प्रसगो को देखते हुए यह कहा जा मकता है कि रयणावली का सौन्दर्य वर्णन तथा नख शिख चिया अत्यन्त भावतग्ल एव रमणीय है । कवि की मौलिक कल्पनामों को देखते हुए यह सहज ही कहा जा सकता है कि यदि उसने स्वतत्र रूप से पद्य-बद्ध नख-शिव चित्रा-प्रस्तुत किया होता तो निश्चित ही अत्यन्त मफल रहता । हेमचन्द्र के सौन्दर्य वर्णन की यह पद्धति परवर्ती अपभ्रश मे लिखे गये काव्यो के सौन्दर्य चित्रो मे स्पष्ट ही देखी जा सकती है। बू कि 'रवणावली' का सारा वातावरण ही ग्रामीण है अत उसकी उपमाए भी नागर न होकर ग्रामीण ही हैं । मौन्दर्य वर्णन की किमी परिपाटी विणेप को स्वीकार कर न चलने के अन्तराल मे भी यही तथ्य निहित है । 'रयणावली' का वियोग-चित्रण -
_ 'रयणावली के मयोग चित्रो की भाति इसके वियोग-चित्र भी उच्चकोटि की साहित्यिकता एव कलात्मकता से युक्त है । साहित्यिक दृष्टि से वियोग के दो प्रमुख विभागो मान और प्रवास दोनो ही का विशद वर्णन हुआ है । 'रयणावली' के कुछ वियोग-वर्णन तो इतने उच्च कोटि के हैं कि उनकी समता के अन्य चित्र दुर्लभ हैं ।
1.
दे0 ना0 मा0 8-17-14