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________________ [ 23 कहा जाना चाहिए। वे जिस परिवार के सदस्य थे उस परिवार मे भी भिन्न-भिन्न धर्मो को मानने वाले लोग सौहार्द से रहते थे । उनके पिता शैव थे, माता तथा मातुल जैन थे । वे जैन धर्म मे दीक्षित होने के बाद भी जयसिंह जैसे कट्टर शैव नृपति के सम्माननीय उपदेशक रहे । हेमचन्द्र के साहित्यिक जीवन का उत्तरार्द्ध भाग कुमारपाल के आश्रय मे बीता । कुमारपाल भी शैव था । प्राचार्य के उदार दृष्टिकोण ने ही उसे जैन धर्म की सेवा मे रत किया। इस प्रकार आचार्य हेमचन्द्र का बौद्धिक जीवन ही नही उनका व्यावहारिक एव भावात्मक जीवन भी विभिन्न धर्मों की समन्वयात्मक दृढ नीव पर स्थित है। अस्तु प्राचार्य हेमचन्द्र के प्रादर्श उदारतावादी धार्मिक दृष्टिकोण ने जयसिंह को बहुत अधिक प्रभावित किया । प्राकृत द्वयाथयकाव्य से हमे इस प्राशय की सूचना मिल जाती है कि जयसिंह ने "रुद्रमहालय" का पुननिर्माण (सिद्धपुर मे) करवाने के बाद एक जैन मन्दिर का भी निर्माण कराया श्रीर इसकी देखभाल के लिए बहुत से ब्राह्मणो की नियुक्ति भी की। इस घटना की पुष्टि सोमप्रभाचार्य के "कुमारपाल प्रतिबोध" से भी हो जाती है । अरव के एक भूगोलवेत्ता "अलइदरीसी" के अनुसार जीवन के अन्तिम दिनो मे जयसिंह जैन धर्म की ओर आकृष्ट हो रहा था । उसी से सूचना मिलती है कि वह बुद्ध की मूर्ति की भी पूजा करता था । परन्तु इन विवरणो से यह निष्कर्प नही निकाला जा सकता कि जयसिंह किसी धर्मविशेष की ओर आकृष्ट था । जयसिंह एक प्रजापालक राजा था । प्रजा द्वारा माने जाने वाले भिन्न-भिन्न धर्मों का यथोचित सम्मान उसका राजोचित धर्म था । यदि जीवन के अन्तिम दिनो मे उसका विशेष झुकाव जैन धर्म की ओर था तो इसका कारण आचार्य हेमचन्द्र और इन्ही के समान विद्वान् वीराचार्य तथा मालाघारी हेमचन्द्र (एक अन्य हेमचन्द्र) आदि से सम्पर्क रहा होगा । वीराचार्य बचपन से ही जयसिंह के मित्र थे । मालाधारी हेमचन्द्र ने भी जयसिंह को प्रभावित कर लिया था । जयसिंह ने उन्हे धर्मध्वज फहराने तथा जैन मन्दिरो पर अण्डाकार सुनहरे गोलक रखने की प्राज्ञा दी थी। मालाधारी हेमचन्द्र ने जयसिंह से एक ताम्रपत्र भी प्राप्त किया था जिस पर वर्ष के 80 दिनो मे जीवो की हत्या न करने का राज्यादेश अकित था । इस प्रकार जयसिंह जैसे योग्य राजा के दरबार मे रहकर आचार्य हेमचन्द्र ने अपने साहित्यिक जीवन का अत्यधिक माग यापन करते हुए अपने महान् व्यक्तित्व का निर्माण किया । इन दो महान् व्यक्तियो के एकत्र सहयोग ने "अणहिल्लपुर" की 1. डा. वूलर-लाइफ माफ हेमचन्द्र, 484-84 नोट न 53
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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