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पदे तो तो प्रानो में अपवाद स्प से 'श' भी सुरक्षित रहा-जैसे मागधी प्राकृत में ।
गीनाममाता ने भी दो ही ऊप्म ध्वनिया 'स' और ह मिलती हैं ।' क्रम से इनका वित विवरण नीचे दिया जा रहा है।
- काय, पास, प्रयोप, महाप्राण, निग्नुनासिक ऊप्म वर्ण है। देशीमाममाना जमने प्रारम्भ होने वाले शब्दो की सत्या 298 है । प्रारम्भवर्तीस्थिति में यम मारे काही अनुगमन है जिसमें प्रतिनिहित हैं-'श' 'स' 'स्व' प्रादि। न- मुमो-गोपाल (8-33), सूई मज्जरी ( 8-41), सूरणो कन्द (8-41) मा. मा प्रा 171 सुनन्यारी नाडीगुलवारिणी (8-42), सेल्लो-मृगशिशु.
गत्य (8-57), नाराजी-प्राटि (एक चिडिया) पराटि!
(8-24) : मा भा. या नाम-गोत्ती-नदीनोतम् । " बाम- माउल्लो अनुराग [स्वाद । स , थाम मेटी-गामेश श्रेष्ठिन् । मध्यवर्ती रियति में 'ग' और स' पूर्णरूपेण म गा पा. का अनुगमन करते है-- -म- प्रज्झमिया -दम (1-30), प्रोसण-उग (1-155),
कामिण सुक्ष्मवत्रम् (2-59)। -स्स- पास्सय-प्रामृत (भेट) (2-12), गिस्सको-निर्भरः (4-32), गिल्सरिन -
प्रस्तम् (4-40) उपान्त में 'स' और 'स्म' के प्रयोग के उदाहरण इस प्रकार है--- प्रबुमू-शरभ (1-11) बेसी गृहद्वारफलहकः (1-8),मोहसो चन्दनम्
(1-168) । स्म- प्रज्झस्सं-प्राकृष्टम् (1-13), कस्सो-पड क (2-2) |
यह कण्ठ्य, नाद, घोप, महाप्राण, निरनुनासिक, ऊज्म वर्ण है । उच्चारण मे स्वास का सघर्षण होने के कारण इसे सघी ध्वनि भी कहा जाता है। प्रातिशाख्यो मे इसे कण्ठ्य या उरस्य बताया गया है । सम्भवतः उस समय इसका उज्चारण स्वरयत्रमुख (काकल) मे होता रहा होगा । सस्कृत मे यह कण्ठ्य हो गया है ।
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1. मा और प के स्थान पर सर्वत्र 'म' ही का व्यवहार हुगा है।