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248 में 'म' सुरक्षित है। इने पश्चिमी प्राकृती पर प्रा मा श्रा का प्रभाव कहा जा मरता है । प्रारम्भवर्ती न-पूर्णरूपेण म. भा श्रा. के 'भ' का अनुगमन करता है-म- माइल्लो हालिक (किसान) (6-104), भल्लु की-शिवा (6-101),
भेडो-भीर (6-107)। प्रा गा.पा-बान-भाउज्जा-भाभी नातजाया। . मृाम-मिग-कृष्णम्भृट ग (6-104), भिंगारी-चोरी भृडगारी मध्यवर्ती 'ग' और 'भ' म गा पा का ही अनुगमन करते हैं
प्रभिण्णपुडो रिक्तपुट. (1-44), कटभुकुटकण्ठ (2-20),
मिलो चौर (2-62)। अमायत्ती-प्रत्यागत: (1-31), उमग्गो-गुण्ठित (1-95),
छोम त्य-अरियम् (3-33)। व्यक्ती कम में प्रतिनिहित हैप्रा ना. वा-- अमपिमाप्रो-राहु अभ्रपिणाचः (1-42) 1 , दन- उम्भालन-दिनोत्पवनम् ।उद्भालन (1-103)
जिण्णाभवा दूर्वा जीर्णोद्गवा (4-46) । - छोटगो-पिशुन क्षुब्ध (3-33) ||
- णिमुग्गो-मग्न निर्मग्न (4-32) । पान में भी 'म' और 'म' के पयोग मिलते है-- -- टिपभो-स्टीन्यस्तोहात. (2-17), कुभी-मीमान्तालकादिः बैंश
रचना-(2-34), चमो हन्नस्फाटितभूमिरेसा (3-1)। - नो-णि {1-79), छोमो-पिणन (3-33), बभो (न की बदी
व (6.88) ।
पर पोस, नार, घोप, प्रमाण मानुनामिक स्पर्शवर्ण है। देशीनाममाला 'प्रामाती वाले जो की मात्रा 196 है। इन शब्दो का प्रारम्भवती
रमना मा पा अनुगमन है। पर शब्दो मे यह प्रा भा श्रा-म-का है।
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मानद्वार (6 137), मेढा गावानहाय. (6-138}, मेठी
___for_16-138)। Frt - 1महोदर मा (1-141), गट्टा-बलात्कार मर (6