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छ - हिंछयो देह (3-36) छिछटरमण-चक्षुस्थगनक्रीडा (3-30) ।
छिछोली-लघुजलप्रवाह (हिन्दी छिछला) (3-27) च्छ- पडिच्छग्रो-समय : (6-16), पडिच्छदो-मुखम् (6-24), पडिच्छिणा
प्रतिहारी (6-21)। उपान्त मे '-प्रच्छ-प्रत्यर्थ (1-49), उच्छुच्छ्-दृप्त (1-99)
उच्छ-वात (1-85). उच्छुच्छ-दृप्त (1-99) अादि । प्रा. भा. या क्षाच्छ-उच्छिवडण-निमीलनम्। अक्षिपतनम् (1-39) ।
अच्छिहरुल्लो-हे प्य [क्षिहर (1-41)। उपान्त मे भी-काणच्छी-काणाक्षिदृष्ट कारणाक्षि (2-24) । प्रा भा पा-त्माच्छ-उच्छगिन -पुरस्कृत ! उत्सगित (1-107) वच्चीउत्तो--नापित वात्मीपुत्र (7-47), (वच्छीवो-गोप [वत्सीय
(7-41)। प्रा भा या घाच्छ-पच्छेणय Lपाथेय (6-24) ।
यह तालव्य नाद, घोष, अल्पप्राण निरनुनासिक स्पर्श सघी ध्वनि है । दे. ना. मा. मे ज' से प्रारम्भ होने वाले 73 शब्द हैं। इनमे 13 शब्दो का 'ज' प्रा भा पा के 'य' का तथा 8 शब्दो का 'ज' प्रा मा पा के 'ध' का स्थानीय है। म भा प्रा की ही परम्परा मे दे ना मा मे भी 'य' से किसी शब्द का प्रारम्म नही हुअा है । शव्दादि मे यह 'ज' के रूप मे आया है।
देश्य शब्दो के प्रारम्भवर्ती 'ज' की स्थितियो के उदाहरण इस प्रकार है__ज - जगल-पकिला सुरा (3-41 ) जच्चो-पुरुष (3-40) जडिन-खचित (3 41) प्रा मा पा गाज-जक्खरत्ती-दीपालिकाध्यक्षरात्रि. (343), जवनो-यवा
ड कुर (3 42), जोवणणीर, जोन्वाणवेन,
जोत्रणोवय वय परिणाम ! यौवन. .. - (3-51 ) । प्रा. भा आ ज्याज-जोइक्खो दीपक ज्योतिष्क (3-49),
जोई- विद्य त ज्योति (3-49), जोइस-नक्षत्रम्।ज्योतिष
(3-39) मध्यवर्ती तथा उपान्त्य 'ज' 'ज' तथा 'जज' दो रूपो मे मिलता हैमध्यवर्ती-ज-प्रजराउर-उष्ण (1-45), खजणो कर्दम (1-69) ।
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उपान्त में '' भी 'च्छ' रूप में ही मिलता है। यह म.भा मा से अलग स्वतन्त्र प्रयोग है।