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12 ] ली। दीक्षा के बाद उसका 'सोमचन्द' नाम पडा । जैनागमो में बनाये गये गाधनो द्वारा कठिन तप करके बहुत शीन ही उमने ममग्न विद्या समुद्रमा प्रवगाहन यर लिया । गुरुदेवचन्द्र ने जब गोमचन्द्र में कुछ ऐगे गुण देगे जो दग घोर निताल मे सभी के लिये सम्भव नही ये, तो उन्होंने उसे गणधर (प्राचार्य) पदवी देकर पई भिक्षुग्रो का अगुवा बना दिया। सोमचन्द्र के शरीर का रंग सोने का था अतः उसा नाम हेमचन्द्र पडा।"
हेमचन्द्र विभिन्न प्रान्तो मे घूमते रहे । परन्तु उपास्य देवी के गुजर-विषय (गुजरात प्रान्त) छोटकर न जाने, तथा यह कहने पर कि 'गुजगत मे रहकर तुम इमका वहत हित करोगे' हेमचन्द्र ने अन्य प्रान्तों में माना जाना बन्द कर दिया और गुजरात में ही रहकर लोगो के बीच ज्ञान का प्रकाण फैलाते रहे।'
___ कुमारपाल के मत्री बाहट (वाग्भट) ने अपनी कथा जागे रपची - 'विश्वप्रसिद्ध विद्वान् शिरोमणि गुजरात का पराक्रमी राजा मिद्धगज जयसिंह इन्ही प्राचार्य हेमचन्द्र से अपनी ममस्त शकायो का निवारण करवाता था। इसके बाद वह हेमचन्द्र के सकेत पर बनवाये गये अणहिलपुर के 'राजविहार' और मिद्धपुर के "मिद्धविहार' की चर्चा करता है। यही वह यह भी बताता है कि मिद्धराज की ही प्रार्थना पर प्राचार्य ने मिद्धहम जैसे महान् व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। वह कहता है सिद्धराज मदेव इन प्राचार्य की स्वर्गिक वाणी सुनने के लिए लालायित रहता था।
'अत यदि श्राप (कुमारपाल) धर्मों का रहम्य जानना चाहते हैं तो मुनियो मे श्रेष्ठ हेमचन्द्र की परित वाणी का श्रवण भक्तिपूर्वक कीजिए।''
'कुमारपाल प्रतिबोध' द्वारा दिया गया हेमचन्द्र विषयक यह विवरण यद्यपि सक्षिप्त है फिर भी उनके जीवन की प्रसिद्ध घटनाग्रो का द्योतन करने में समर्थ है। ग्रन्थ का रचयिता हेमचन्द्र का समसामयिक है अत उसके द्वारा दी गयी घटनाए प्रामाणिक भी हो सकती है ।
प्राचार्य हेमचन्द्र के जीवन की प्रमुख घटनाग्रो की तिथिया प्रमावक चरित में मिल जाती हैं । वे तिथिया इस प्रकार है
(1) हेमचन्द्र का जन्म - वि स 1145 (1089 ई ) कार्तिक पूर्णिमा । (2) दीक्षा ग्रहण-वि स 1150 (1094 ई ) (3) सूरि या प्राचार्यपद ग्रहण-वि स 1166 (1110 ई ) (प्र. च
पृ 347, 848,849)
1. कु. प्र. वो. पृ 22