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जीवन का विशद विवेचन करने मे डा वूलर ने निम्नलिखित चार ग्रन्यो की सहायता ली है :--
(1) प्रभाचन्द्र सूरि का प्रभावकचरित-समय 1278 ई० । (2) मैरुतुङ्ग कृत प्रवन्धचिन्तामरिण । (3) राजशेखर का प्रवन्ध कोश । (4) जिनमण्डल उपाध्याय का कुमारपाल प्रतिबोध ।
इन विभिन्न ग्रन्यो से सहायता लेने के अतिरिक्त स्वय हेमचन्द्र द्वारा रचित द्वयाश्रय काव्य, सिद्धहैमव्याकरण की प्रशस्ति, विषष्टिशलाका पुरुप-चरितान्तर्गत 'महावीरचरित' आदि से भी डा वूलर ने हेमचन्द्र के जीवन के प्रामाण्य एकत्र किये।
आधुनिक खोजो के आधार पर कुछ और भी ग्रन्य सामने आये हैं, जिनसे हेमचद्र के जीवन पर प्रकाश पडता है । इनमे दो ग्रन्थ तो हेमचन्द्र के समकालीन है
(1) सोमप्रभ सूरि कृत कुमारपाल प्रतिबोध । (2) यशपाल कृत मोहराज पराजय । (3) पुरातनप्रवन्ध सग्रह ।
उपर्युक्त तीन ग्रन्थो मे प्रथम दो हेमचन्द्र के समकालीन ग्रन्थ हैं अन्तिम पुरातन प्रवन्धसग्रह अनेको विवरणो का एकत्र सलग्न मात्र है।
ऊपर गिनाये गये ग्रन्यो मे सोमप्रभसूरि कृत कुमारपाल प्रनिबोध हेमचन्द्र की समसामयिक रचना होने के कारण उनकी जीवन विपयक प्रामाणिक सामग्री दे सकती थी, परन्तु लेखक स्वय ही इस बात को स्वीकार करता है कि ' मैंने दोनो (हेमचन्द्र और कुमारपाल) के जीवन से सम्बन्धित वही घटनाएँ ली हैं जिनका सम्बन्ध उनके जनधर्म स्वीकार करने के बाद के जीवन से है । इस प्रकार यह ग्रन्थ हेमचन्द्र और कुमारपाल के मिलने तथा कुमारपाल के जैनधर्म स्वीकार करने के बाद की ही घटनाप्रो का उल्लेख करता है। यदि इस ग्रन्थ को आधार बनाकर हेमचन्द्र के जीवन का विवेचन किया जाये तो उनके जीवन की अनेको महत्त्वपूर्ण घटनायें अन्धकार मे रह जायेंगी। इसकी तुलना में प्रभावकचरित इस दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी है।' कुमार पाल प्रतिबोध हेमचन्द्र के जीवन की जितनी घटनाओ का उल्लेख करता भी है सीधे नही घुमा फिरा कर करता है। इसके लिये लेखक एक नाटकीय स्थिति की प्रायोजना करता है-ब्राह्मण धर्म मे यज्ञो इत्यादि के वीच भयानक रक्तपात देखकर उसको वास्तविक धर्म न मानते हुए कुमारपाल का वास्तविक धर्म के ज्ञान की जिज्ञासा होती है। यह जिज्ञासा चिन्ता का रूप धारण कर लेती है । जब उसके मत्री वाहडदेव (वाग्भटदेव) को इस बात का पता चलता है तब वह