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रखा होगा । यही कारण है कि इसके कुछ शब्द साहित्यिक प्राकृतो मे नही प्रयुक्त हुए है । ऐसे शब्द अवश्य ही प्रचलित प्रान्तीय बोलियो से लेकर संग्रहीत किये गये होंगे । इन तथ्यो को ध्यान में रखते हुए विद्वानो द्वारा दिया गया यह तर्क कि "देशी" शब्दो मे आर्येतर तत्व मिले हुए हैं तर्क की कसौटी पर खरा नत्री उतरता । दूसरी ओर आधुनिक भारतीय आर्य भापायो की बोलियो मे इन शन्दो की खोज मे यह निश्चित होता जा रहा है कि ये शब्द प्राचीनकाल से जनमाधारण की बोलचाल की भाषा में प्रचलित थे और आज भी उसी वर्ग के लोगो में प्रचलित देवे जा मकते हैं। उदाहरण सहित इस बात का विवेचन प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के एक अलग अध्याय में किया जायेगा। देशी गन्दो के उद्भव और विकास का सास्कृतिक धावार .
यह पहले ही बताया जा चुका है कि "देशी" शब्द बहुत प्राचीन काल से ही प्रचलित मामान्य वोचचाल की भाषा के रूप है । इन शब्दो के उद्भव और विकाम की कहानी समस्त प्रार्य संस्कृति के विकास की कहानी है । देशी शब्दो के उद्भव का मूल पार्यों के यहा पाकर बमने तथा उनका विभिन्न भाषा भापियो से सम्पर्क होने में निहित है। प्रार्य संस्कृति बहुत प्रारम्भ से ही ग्राम्य सस्कृति रही है । 'देशी' शब्दो का बहुत कुछ सम्बन्च ग्राम्य मस्कृति से ही है। ये शब्द युगयुगो से सास्कृतिक आदान-प्रदानो तथा विविध वार्मिक तथा सास्कृतिक आन्दोलनो के बीच में गुजरने हुए आज की नापानी में भी अपने वास्तविक स्वरूप को सजोये हुए हैं।
भारतीय पार्यों की मम्कृति का निर्माण मिश्रण से हरा है। श्रायों के यहा पाने के पहले यहा प्रमुख रूप से तीन चार आर्येतर जातियो का प्रभाव इन पर पड़ा था वे जातिया कोल, किरात, मृण्डा और द्रविड थी। निपाद कही जाने वाली प्रान्टिक जाति भी इन्ही में शामित्र की जा सकती है। इन जातियो से सम्पर्क होते ही पार्यो की सस्कृति में इनकी सस्कृति के अनेको तत्त्व मिश्रित हो गये । ग्रार्यों के पास एक मणक्त मापा थी उन्होंने इन आर्येतर जातियो के सास्कृतिक प्रभावी का ग्रहण अपनी भापा मे करने के माय ही पार्वतर जातियो को अपनी भाषा से भी अवगत कराया। धीरे-धीरे प्रार्येतर जातिया भी आर्य भापा मापी बनती गयीं। उनके अनेको माम्यदिक उपादान प्राय भापापो का सहारा लेकर प्रार्य मस्कृति के वीच ममाहित होते गये । यह प्रापसी प्रादान-प्रदान धीरे-धीरे अपना वास्तविक रूप प्रार्य-भाषाओं के अन्तर्गन ठिपाता गया। यह काल 'छान्दम्' काल रहा होगा। इस समय प्रचलित भिन्न भिन्न स्थानीय बोलियो में प्रार्य प्रार्येतर तत्त्व एकाकार हो चुके रहे होगे ।