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________________ ____164 ] गयी। काल्डवेल का कहना है कि आधुनिक भारतीय आर्य भापानो पर द्रविड़ मापानी का प्रभाव है। आधुनिक प्रार्य भाषाए विश्लेषणात्मक हैं और यह विश्लेणात्मकता काल्डवेल के अनुसार द्रविड प्रभाव है तो यह प्रभाव वैदिक तथा उसकी परम्परा की अन्य मव्यकालीन आर्य मापात्रो पर भी क्यो नही पड़ा ? काल्डवेल की यह परिकल्पना भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी ठीक नहीं लगती । सनी द्रविड मापाएं संश्लेषणात्मक हैं जबकि प्रा० प्रा० भापाएं विश्लेपणात्मक प्रवृत्ति से युक्त होते हुए मी सस्कृत की सयोगात्मकता से युक्त है । इसमे कुछ निश्चित कारक पर मर्गों का विकास हो गया है लेकिन मूल रूप मे ये सस्कृत- परम्परा का ही निर्वाह करती चल रही हैं । कुल मिलाकर आधुनिक आर्य भाषाएं प्राकृतो की परम्परा में विकसित हैं और प्राकृत भाषा के सयोगात्मक और वियोगात्मक दोनो ही प्रभावो से युक्त है। श्रत प्राधुनिक प्रार्यमापायो की मस्कृत से अलग स्वरूपगत और व्याकरणगत विशेषताएं है । आर्य जाति की भाषा प्राकृतो की परम्परा मे हैं न कि सीथियन और द्रविड भापानो की परम्परा मे । मयोगात्मकता से वियोगात्मकता की ओर यह विकास कोई नया उदाहरण नहीं, लेकिन (सयोगात्मक) मे विकसित इटेलियन, फ्रेंच, शेनिश,पोचंगीज आदि वियोगात्मक मापाए उदाहरण के रूप में देखी जा सकती हैं । अन्त मे यह कहा जा सकता है कि डा० काडवेल के मत मे वैदिक और लौकिक मस्कृत मे अनेको शब्द द्राविडीय भापानी से ग्रहण किये गये हैं ठीक नहीं है । क्योकि द्राविडीय भापा के जिस साहित्य मे रे शब्द पाये जाते हैं वह वैदिक माहित्य से प्राचीन नहीं है । हो सकता है ये शब्द आर्य भापा ने द्रविट भापा-मापियो ने ग्रहण किये हो। प्रावुनिक भाषाविदो मे कुछ लोगो ने भाषा में पाये जाने वाले 'देशी' शब्दो का सम्बन्ध प्रार्येतर भापानी में बनाया है परन्तु इस पोर बहुत कम ही प्रयास हुअा है । जितने लोगो ने भी थोडे - हृत शब्दो को प्रार्येतर भापायो से सम्बन्वित करने का प्रयास किया है, उनका प्रयास अब भी मदिग्य बना हया है। शब्दो का मादृश्य मात्र दिग्वा देना पर्याप्त नहीं है । उनके लिए पर्याप्त ऐतिहामिक भौगोलिक नया भाषा वैज्ञानिक प्रावानों की आवश्यक्ता है। भारतीय प्रायों की सस्कृति मिश्रण प्रधान मस्कृति है। जब से यहा प्रार्य प्राय तब से लेकर अब तक उनका सम्पर्क किनी न किमी नयी जाति में होता रहा है। इस सम्पर्क के बीच प्रादान-प्रदान नवंथा मम्भव तत्र्य है। भारतीय प्रार्य भापायी ने भी इमी प्रक्रिया से प्रार्येतर जातियो मे वहत कुछ ग्रहण किया होगा। लेकिन इस प्रक्रिया ने इन पर जो भी प्रभाव पटा वह अत्यन्त मूदम है । शार्यो की भाषा प्रारम्भ से ही प्रार्येतर जातियो की भाषा मे सशक्त रही है। जो भी प्रभाव उमने दूसरो से ग्रहण किया अपने ढग से । जहा तक 'दशी' शब्दो का सम्बन्ध है मभव है कुछ शब्द भार्येतर जातियों से लिये गये हो पर दन बीती का ठीक ठीक निर्धारण कर पाना मर्वया असभव है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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