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6 ] शब्दो को प्रान्तीय जनमापामो की शब्द सम्पत्ति स्वीकार किया है। इसके बाद देणी शब्दों के उद्भव और उनके विकास के कारणों का निरूपण किया गया है। देशी शब्दो के उदभव एव विक्राम के दो प्रमुख कारणो (भापावनाविक एव सास्कृतिक) का विस्तृत उल्लेख किया गया है, और अन्त में फिर यही निष्कर्ष दिया गया है कि देशी शब्द युग युगो से व्यवहृत होती पायी भारतीय जन मापायो से सम्बन्धित है। इनका जान लोकव्यवहार पर आधारित है। इन्हे व्याकरण गत सम्कारो के बन्धन में नही वाघा जा सकता।
अण्याय 6-इस अध्याय में देशीनाममाला के लगभग 168 शब्दो का हिन्दी तथा उमकी प्रमुख वोलियो में विकास प्रशित किया गया है। इन सभी शब्दो को प्राचार्य हेमचन्द्र ने देगी कहा है यहा भी इन्हें देशी ही माना गया है। इमका एक कारण है, शब्दो की प्रकृति और उनकी स्थिति का निर्धारण उनके प्रयोग के वातावरण को देखकर किया जाना चाहिए । उनकी ध्वनिगत और पदगत विशेपतायो को देखकर नही । इम अध्याय में जितने शब्द आये हैं, उनमें अधिकांश विद्वानो की दृष्टि मे तद्भव हो सकते हैं । इस बात का संकेत भी कर दिया गया है परन्तु वातावरण की दृष्टि से ये नमी शब्द देशी लगते हैं । इनका व्यवहार माहित्यिक भापानी मे न होकर प्राय लोकमापाप्रो में होता दवा जा रहा है । हेमचन्द्र ने भी इन शब्दो का सकलन लोक मापापो की ही सम्पत्ति मानकर किया था, इसी मान्यता के अनुम्प इस अध्याय मे कुछ शब्दो का प्रयोग हिन्दी तथा उसकी प्रमुख बोलियो, अवधी ब्रज, भोजपुरी प्रादि में दिखाया गया है। शब्दो का यह विकास निीरूपण यद्यपि पारम्परिक नहीं है, फिर भी गोव की पारम्परिक लीक को तोडकर जो निष्कर्ष निकाले गये है वे भविष्य के अनुसवानो को दिशा निर्देश करने में सहायक हो सकते हैं । इमी रीति से देणीनाममाला के सभी मन्द किसी न किसी प्रान्त वी लोकभाषा मे सभित किये जा सकते है । देशीशब्दो की व्युत्पति ढ ढने के चक्कर मे न पडकर यदि इनके विकास का ज्ञान प्राप्त कर, इनकी प्रकृति का निर्धारण किया जाये तो अत्यन्त महत्वपूर्ण परिणाम सामने आ सकता है।
अध्याय 7-इम अध्याय में देशी शब्दो का भाषाशास्त्रीय अध्ययन प्रस्तत किया गया है। पूरे अध्ययन को तीन खण्डो मे वाटा गया है--(1) व्वनिग्रामिक अध्ययन (2) पदनामिक अध्ययन (3) अर्थगत अध्ययन । देशीनाममाला के शव्द या तो निविभक्तिक है, या फिर प्रथमान्त है, अतः इनका रुप-ग्रामिक अध्ययन समव नही था, यही कारण है कि अध्ययन को तीन ही खण्डो तक सीमित रखा गया है प्रत्येक खण्ड का अध्ययन क्रम इस प्रकार है
(1) ध्वनिग्रामिक अध्ययन - एमके अन्तर्गत देणीनाममाला के शब्दो मे व्यवहृत स्वर एव व्यजन ध्वनिग्रामो का ऐतिहासिक एव वर्णनात्मक विवेचन किया गया है । देणीनाममाला में व्यवहृत स्वर व्वनिग्राम एव व्यजन व्वनिग्राम इस प्रकार हैं
स्वर ध्वनिग्राम-(खण्डीय)-अ, पा, ड, ई, र, ऊ, ए, ऐ, ओ, पी। ऋ और लू का प्रयोग विरकुल नहीं है । ऐ और श्री का प्रयोग भी अह और अउ स्वरसयोंगो के ही रूप में मिलता हैं । प्राप्त म्वर व्वनिग्रामो का प्रादि मध्य और अन्त्य स्थितियों में वितरण भी दिखा दिया गया है।