________________
आमख
-
प्राचार्य हेमचन्द्र का 'देशीनाममाला' नामक कोशग्रन्थ भारतीय कोशग्रन्थ परम्परा मे तो अद्भुत है ही, समस्त विश्व के कोषो मे भी अद्भुत एव विलक्षण है । मध्यकालीन भारतीय प्रार्यभाषामो पालि, प्राकृत अपभ्र श आदि की प्रकृति को भलीभाति समझने मे इस कोश ग्रन्थ का सूक्ष्म अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 'देशीनाममाल' 'देशी' शब्दो का एक कोश ग्रन्थ है। इसमे लगभग 4,000 देशी शब्दो का संकलन है । आचार्य हेमचन्द्र ने इस कोश मे देशी शब्दो का अर्थ देने के साथ ही उनके प्रयोग निदर्शन के लिए अत्यन्त सुन्दर एव उच्चकोटि के साहित्यिक पद्यो की रचना भी की है । इसी कोष ग्रन्थ के साहित्यिक एव भाषावैज्ञानिक महत्व का प्रतिपादन प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का विषय रहा है । भारतीय साहित्य परम्परा मे प्राचार्य हेमचन्द्र बहुमुखी प्रतिभा से युक्त विद्वान रहे हैं । उन्होने धर्म, दर्शन, व्याकरण और साहित्य-लगभग सभी विपयो से सम्बन्धित ग्रन्थो की रचना की थी। देशीनाममाला उनके प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ सिद्ध हैमशब्दानुशासन का पूरक ग्रन्थ है । प्राचार्य हेमचन्द्र ही अकेले ऐसे विद्वान् हैं, जिन्होने, सस्कृत प्राकृत और अपभ्र श- सभी परम्परा प्रचलित साहित्यिक-भाषामो का व्याकरण लिखा । एक ही ग्रन्थ सिद्ध हैमशब्दानुशासन मे उन्होंने तत्सम और तद्भव दोनो ही शब्दो का प्रत्याख्यान किया। तत्पश्चात् व्युत्पत्ति की दृष्टि से गूढ एव असदर्घ्य देशी शब्दो का परिगणन देशीनाममाला मे कर, अपने शब्दानुशासन को सभी दृष्टियो से पूर्ण बनाया ।
प्राचार्य हेमचन्द्र के लगभग सभी ग्रन्थो पर अधिकारी विद्वानो ने कार्य किया है, पर देशीनाममाला लगभग उपेक्षित ही रहा है। 1874 ई के पहले तो सभवत. लोग इस ग्रन्थ के बारे मे जानते भी नही रहे होगे। बुल्हर ने पर्याप्त परिश्रम के बाद पिशेल के साथ मिलकर 1880 ई मे इस ग्रन्थ को प्रकाशित कराया पर ये लोग प्रकाशन कार्य तक ही सीमित रहे, इस ग्रन्थ की महत्ता का