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________________ 2/1 सवि तु (अ) = तो जाण (जाण) विधि 2/1 सक णयपक्ख [(णय)- (पक्ख) 2/1] जयपक्खातिरकतो [(णय) + (पक्ख)+ (अतिक्कतो)] [(णय)- (पक्ख) - (अतिक्कत) 1/1 वि] भण्णदि (भण्णदि) व कर्म 3/1 सक अनि जो (ज) 1/1 सवि सो (त) 1/1 सवि समयसारो (समयसार) 1/1 | 1 कभी कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-155)। कम्म = कम । बद्धमवद्ध = वद्ध+प्रवद्ध = बांधा गया, न बांधा गया। जीवे = जीव मे + जीव के द्वारा । एद = इसको । तु=तो । जाण % जानो । रायपक्ख = नय की दृष्टि । रणयपक्खातिक्कतोनय की दृष्टि से अतीत । भण्णदि = कहा गया। जो जो। सो वह । समयसारो = समयसार। 47 48 जीवो (जीव) 1/1 ववगदमोहो [(ववगद) भूक अनि-(मोह) 1/1] उवलद्धो (उवलद्ध) भूक 1/1 अनि तच्चमप्पणो ] (तच्च) + (अप्पणो)] तच्च (तच्च) 2/1 अप्पणो (अप्प) 6/1 सम्म (अ) = पूर्णत जहदि (जह) व 3/1 सक जदि (अ) = यदि रागदोसे [(राग)-(दोस) 2/2] सो (त) 1/1 सवि अप्पाण (अप्पाण) 2/1 लहदि (लह) व 3/1 सक सुद्ध (सुद्ध) भूक 2/1 अनि । 1 'उवलद्ध' = इसका प्रयोग कर्तृवाच्य मे हुआ है । यह विचारणीय है। जीवो = व्यक्ति ने । ववगदमोहो = मोह समाप्त किया गया। उवलद्धोप्राप्त किया। तच्चमप्पणो तच्च+अप्पणो सार को, आत्मा के। सम्म = पूर्णतः । जहदि = छोड देता है । जदि = यदि । रागदोसे = रागद्वप को । सो= वह। अप्पाण = अपने । लहदि प्राप्त कर लेता है - प्राप्त कर लेगा। सुद्ध = शुद्ध स्वरूप को। 63 द्रग्य-विचार
SR No.010720
Book TitleAacharya Kundakunda Dravyavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1989
Total Pages123
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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