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(तिविह) 3/1 झाइज्जइ (झा) व कर्म 3/1 सक परमप्पा (परमप्पा) 1/1 उवइट्ठ (उवइट्ठ) 1/1 वि । जिणवारदेहि (जिणवरिंद) 3/2। प्रारहवि = ग्रहण करके । अतरप्पा = अन्तरात्मा को। बहिरप्पा = बहिरात्मा को। छडिऊरण = छोडकर । तिविहेण = तीन प्रकार से । झाइज्जइ%ध्याया जाता है । परमप्पा-परमात्मा। उवइट्ठ% कहा गया । जिणवारदेहि अरहतो द्वारा ।
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जो (ज) 1/1 सवि पस्सदि (पस्स) व 3/1 सक अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 अबढ़पुट्ठ [(अव)+ (अपुठ्ठ)] [(अवद्ध) भूक अनि-(अपुढ) भूक 2/1 अनि] अणण्णय (अणण्ण) 2/1 वि स्वार्थिक 'य' प्रत्यय णियद (णियद) 2/1 वि अविसेसमसंजतं [(अविसेस) + (असजुत्त)] अविसेस (अविसेस) 2/1 वि प्रसजुत्त (असजुत्त) भूकृ 2/1 अनि त (त) 2/1 सवि सुवनय (सुदनय) 2/1 वियाणाहि (वियाण) विधि 2/1 सक। 1 आज्ञार्थक या विधि अर्थक प्रत्ययो के होने पर कभी-कभी अन्त्यस्थ
'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति देखी जाती है (हेम-प्राकृत
व्याकरण, 3-158 वृत्ति) जो जो । पस्सदि = देखता है । अप्पाण = प्रात्मा को। अबद्धपुट्ठ = वध से रहित, न छुपा हुआ। अणण्णय = अद्वितीय । णियद - स्थायी। अविसेसमसजुत्त = अविसेस+प्रसजुत्त = भेद से रहित, अमिश्रित । त%3D उसको । सुद्धणय = शुद्धनय (को) । वियाणाहि = जानो ।
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प्ररसमरूवमगध [(अरस) + (अरूव) + (अगध)] अरस (मरस) 1/1 वि अरूव (अरूव) 1/1 वि अगघ (अगप) 1/1 वि अन्वत्त (अन्वत्त) 1/1 वि चेयणागुणमसद्द [(चेयणा)+ (गुण)+ (असद्द)] [(चेयणा)(गुण) 1/1] असद्द (असह) 1/1 वि जाणलिंगग्गहण [(जाण)+ (अलिंग)+ (ग्गहण)] जाण (जाण) 1/1 [(अलिंग) वि- (ग्गहण) 1/1] जीवमणिविद्वसठाण [(जीव) + (अणिट्ठि)+ (सठाण)] जीव (जीव) 1/1 [(अणिट्टि) वि-(सठाण) 1/1] । अरसमरूवमगध = अरस + अरूव+अगध = रसरहित, रूपरहित, गधरहित। अन्वत्त = अदृश्यमान । चेयणागुणमसद्द - चेतना, स्वभाव, शब्दरहित । जाणमलिंगग्गहण =जाण+आलिंग+गहण = ज्ञान, बिना किसी
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द्रव्य-विचार