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________________ 1. द्रव्य सत् (है)। (वह) इस विवरणवाला (है) । (ऐसा) स्वभाव मे सिद्ध (है)। जितेन्द्रियो ने वास्तविक रूप से (ऐसा) कहा (है)। जो व्यक्ति आगम से स्थापित द्रव्य को ठीक इसी प्रकार स्वीकार नहीं करता है, वह निस्सन्देह असत्य दृष्टिवाला (है)। 2 यदि द्रव्य सत् नही होता है (तो) वह द्रव्य असत् होगा । अथवा (यदि) (द्रव्य) सत् से भिन्न होता है, (तो) (वह) (सत्तारहित) (द्रव्य) नित्य कसे (होगा) ? अत द्रव्य स्वय सत्ता (है)। 3 द्रव्य (दो प्रकार का है)-जोव और अजीव । जीव चेतन (है) (तथा) उपयोगमय (जान स्वभाववाला) (है) । इसके विपरीत अजीव अचेतन होता है (जिसके अन्तर्गत) पुद्गल द्रव्यसहित (अन्य द्रव्य है)। 4. जीव (तनावमुक्त अवस्था मे) सब को (केवल) देखता है, जानता है, (वह) (तनावयुक्त अवस्था मे) सुख चाहता है, दुख से डरता है, उचित और अनुचित (कार्यों) को करता है तथा उनके फल को भोगता है। 5 जिसमे कभी भी सुख-दुख का ज्ञान, हित का उत्पादन तथा अहित से भय वर्तमान नही होता है, उसको श्रमण अजीव कहते है। 6 अनेक जीव, पुद्गलो का समूह, धर्म, अधर्म, आकाश और काल (ये) वास्तविक पदार्थ (द्रव्य) कहे गये (है)। (ये सभी) अनेक गुण और पर्यायो सहित (होते हैं)। द्रव्य-विचार
SR No.010720
Book TitleAacharya Kundakunda Dravyavichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1989
Total Pages123
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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