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कोडे आदि के स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रिया होती है । (31) । नूं, खटमल, चीटी, बिच्छू आदि के स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रिया होती है । (32)। मच्छर, मक्खी, मवरा आदि जीवो के स्पर्शन, रमना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रिया होती है । (33)। मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीवो के स्पर्शन, रमना, प्राण, चक्षु और कर्ण ये पाच इन्द्रिया होती है (34)।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीव तीन प्रकार के है-बहिरात्मा, अन्तगत्मा और परमात्मा । जो व्यक्ति यह मानता है कि इन्द्रिया ही परम सत्य है, वह वहिरात्मा है (41) । वहिरात्मा शरीर को ही आत्मा समझता है और शरीर के नष्ट होने पर अपने को नष्ट हुआ समझता है । वह इन्द्रियो के विपयो मे आसक्त रहता है, वह इच्छित वस्तु के सयोग से प्रसन्न होता है और उसके वियोग में अप्रसन्न । वह मृत्यु के भय से आक्रान्त रहता है । वह कार्माण-शरीर-स्पी काचली मे ढके हुए ज्ञान-रुपी शरीर को नहीं जानता है, इमलिए बहुत काल तक वह ससार मे भ्रमण करता है।
अन्तरात्मा अपने आत्मा को अपने शरीर मे भिन्न समझता है (41) । यह निर्भय होता है अत उसे लोकमय, परलोकभय, मरणमय आदि नही होते । उमके कुल, जाति, रूप, ज्ञान, धन, वल, तप और प्रभुता का मद नहीं होता । आत्मत्व मे रुचि पैदा होने से उसकी मासारिक पदार्थों मे आसक्ति नहीं होती और वह शीघ्र ही जन्म-मरण के चक्कर से हट जाता है ।
परमात्मा वह है जिसने आत्मोत्थान मे पूर्णता प्राप्त कर ली है और काम, क्रोधादि दोपो को नष्ट कर लिया है एव अनन्त ज्ञान, अनन्त शक्ति और अनन्त सुख प्राप्त कर लिया है तथा जो सदा के लिए जन्म-मरण के चक्कर मे मुक्त हो गया है (41)।
प्राचार्य कुन्दकुन्द का कहना है कि साधक वहिरात्मा को छोडे और अन्तरात्मा बनकर परमात्मा की ओर अग्रसर हो (42)।
पुद्गल-जिसमे रूप, रस, गध और स्पर्श ये चारो गुण पाये जावे, वह पुद्गल है (9) । सव दृश्यमान पदार्थ पुद्गलो द्वारा निर्मित है। पुद्गल द्रव्य के दो भेद हैं- परमाणु और स्कघ । दो या दो से अधिक परमाणुओ के मेल को स्कध कहते हैं । जो पुद्गल का सबमे छोटा भाग है, जिसे इन्द्रिया ग्रहण नहीं कर मकती और जो अविभागी है, वह परमाणु है (109) । परमाणु अविनाशी तथा
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