________________
५. ]
प्राचार्यमी तुलसी अभिमबम पम्प
[ प्रथम
मौन की साधना
समन्वय की साधना के लिए प्राचार्यश्री ने बहुत सहा है। मौन की बहुत बड़ी साधना की है। उसके परिणाम भी अनुकल हुए हैं । इस प्रसंग में प्राचार्यश्री की डायरी का एक पृष्ठ है :
"अाज व्याख्यानोपरान्त बम्बई समाचार के प्रतिनिधि मि० त्रिवेदी पाए। उन्हें प्रधान सम्पादक सोरावजी भाई ने भेजा था। हमारा विरोध क्या हो रहा है? उसे जानना चाहते थे। और वे यह भी जानना चाहते थे कि एक ओर से इतना विरोध और दूसरी ओर मे इतना मौन । प्राविर कारण क्या है ?''
"अाज त्रिवेदी का लेख बम्बई-समाचार में आया। काफी स्पष्टीकरण किया है। वे कहते थे, अब हमने आक्षेपपूर्ण लेखों का प्रकाशन बंद कर दिया है। यह निभेगा तो अच्छी बात है।"२
“समन्वय-साधकों के प्रति प्रशंसा का भाव बन रहा है--विजयवल्लभ सूरीजी का स्वर्गवास हो गया। उनकी भावना समन्वय की थी। वे अपना नाम कर गए।"
___ "इस दिशा में सर्व धर्म-गोष्ठियाँ भी होती रहीं--प्राज सर्वधर्म-गोष्ठी हुई । उसमें ईमाई धर्म के प्रतिनिधि वेग्न आदि तीन अमरीकन; पारसी, रामकृष्ण मठ के मंन्यासी सम्बुद्धानन्दजी, पार्य ममाजी आदि वक्ता थे।
अन्त में अपना प्रवचन हुा । फादर विलियम्स ने उसका अंग्रेजी अनुवाद किया । बड़े अच्छे ढंग से किया। कार्यक्रम सफल रहा।"
उन्हीं दिनों बम्बई-समाचार में एक विरोधी लेख प्रकाशित हुआ । आचार्यश्री ने उस समय की मन:स्थिति का चित्रण करते हुए लिखा है--"अाज बम्बई समाचार में एक मुनिजी का बहुत बडा लेख पाया है। आक्षेपों से भरा हया है। भिक्षु-स्वामी के पद्यों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है । जघन्यता की हद हो गई। पढ़ने मात्र में प्रात्म-प्रदेशों में कुछ गर्मी पा सकती है । औरों को गिराने की भावना से मनुष्य क्या-क्या कर मकता है, यह देखने को मिला। उसका प्रतिकार करना मेरे तो कम ऊँचता है। ग्राग्विर इस काम में ( औरों को नीचा दिखाने के काम में ) हम कैसे बगवरी कर सकते हैं ! यह काम तो जो करते हैं, उन्हीं को मबारक हो! अलबना स्पष्टीकरण करना जरूरी है, देव, किस तरह होगा।"५
"इधर में विरोधी लेखों की बड़ी हलचल है। दूसरे लोग उनका सीधा उत्तर दे रहे हैं। उन्हें घणा की दृष्टि मे देख रहे हैं । अपना मौन बड़ा काम कर रहा है।" साधु-साध्वियों का निर्माण
दम मोन का अर्थ वाणी का प्रयोग नहीं, किन्तु उमका मंयम है। प्राचार्यश्री का जीवन संयम के संस्कार में पला है, इसलिए वे दूसरों के असंयम को भी संयम के द्वारा जीतने का यत्न करते हैं। वे व्यक्ति-विकास में विश्वास करते हैं; उसका प्राधार भी नंयम ही है। उन्होंने अपने हाथो अनेक व्यक्तियों का निर्माण किया और कर रहे है। उनका सर्वाधिक निकट-क्षेत्र है-माधु-समाज । पहला दप्टिपात वहीं हो, यह अम्वाभाविक नहीं। निर्माण की पहली रेखा यही है। "साधु-साध्वियों में प्रारम्भ मे ही उच्च साधना के संस्कार डाल दिये जायें तो बहुत संभव है कि उनकी प्रकृति में अच्छा
१ वि० सं० २०११ श्रावण शुक्ला १०, बम्बई २ वि० सं० २०११ श्रावण शुक्ला १३, बम्बई ३ वि०सं० २०११माश्विन कृष्णा ११, बम्बई ४ बि.सं २०११माश्विन कृष्णा १२, बम्बई-सिक्कानगर ५ वि.सं. २०११माश्विन शुक्ला २, बम्बई-सिक्कानगर
वि.सं. २०११ श्रावण शुक्ला ११, बम्बई-सिक्कानगर