________________
४
]
भाषाबंधी तुलसी अभिनन्दन पन्थ
उवार दृष्टिकोण का परिणाम
प्राचार्यश्री केवल वाक-पटु ही नहीं, समयज्ञ भी हैं। वे कट बात भी ऐसी परिस्थिति में कहते हैं कि श्रोता को वह असह्य नहीं होती। प्राचार्यश्री बहुत बार कहते हैं कि मुझ में व्यवहार-कौशल उतना नहीं, जितना कि एक शास्ता में चाहिए। पर सचाई यह है कि उनका कठोर मंयम उन्हें कृत्रिम व्यवहार की ओर प्रेरित नहीं करता। वे प्रौपचारिकतामों से दूर हटते जा रहे हैं, फिर भी उनकी सहृदयता परिपक्व है। प्राचार्यश्री के मानस में क्रमिक विकास हुआ है। उनकी प्रगति नत्त्ववेता की भूमिका से स्थितप्रज्ञता की भूमिका की ओर हुई है। वे एक धर्म-सम्प्रदाय के प्राचार्य हैं, फिर भी उनका दृष्टिकोण सम्प्रदायातीत है । उनकी विशेषताएं इसलिए चमकी हैं कि उन्होंने दूसरों की विशेषताओं को मुक्त भाव से स्वीकार किया है । वे इसीलिए सबके बने हैं कि उन्होंने सबको अपनत्व की दृष्टि से देखा है। वे प्रतीत और वर्तमान की तलना करते हुए अनेक बार कहते हैं-"अाज हम भी उदार बने हैं, आप लोग भी उदार बने हैं। मैं मानता हूँ कि सब सम्प्रदाय उदार बने हैं। उदार बने बिना कोई व्यक्ति ग्रहणशील भी नहीं बनता।" प्राचार्यश्री के सामने जो विशेषता पाती है, उसे वे सहसा ग्रहण कर लेते हैं। यह उनके उदार दृष्टिकोण का परिणाम है। प्राचार्यश्री की डायरी के पृष्ठ इसके स्वयंभू प्रमाण हैं । "माज दुपहरी में पौने तीन बजे विमला बहिन आई। वह विनोबा के भूदान-यज्ञ की विशेषज्ञा है, विदुषी है। बड़ा अच्छा वक्तव्य देती है। प्राकृति पर पोज है। थोड़ा प्रवचन सुना। भूदान-यज्ञ के कार्यकर्ता प्रच्छेअच्छे हैं। इसमे प्रगति का सूचन मिलता है। अणुव्रत-आन्दोलन के कार्यकर्ता भी ऐसे हों, तो बहुत काम हो सकता।"
__"अाज वृन्दावन के वन महाराज वैष्णव संन्यासी पाए। वे वृन्दावन में एक विश्वविद्यालय बनाना चाहते हैं। प्राथमिक तैयारी हो गई। उसमें सब धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए तेरह पीठ रखे गये हैं। उनमें एक जैन-पीट भी है। जैन-पीठ के लिए लोगों ने हमारा नाम सुझाया, इसलिए वे पाए हैं। बहुत बातें हुई । समन्वयवादी व विद्वान व्यक्ति मालूम हुए।"२
इस उदार दृष्टि से ही प्राचार्यश्री का अन्य दर्शनानुयायियों के साथ सम्पर्क बढ़ गया है। वे यहां पाते हैं और आचर्यश्री उनके वहाँ जाते हैं। इस क्रम से समन्वय की एक सुन्दर सष्टि हुई है। प्राचार्यश्री ने ऐसे अनेक प्रसंगों का उल्लेख किया है-"आज तीन बौद्ध भिक्षु आए। एक लंका के थे, एक बर्मा के और तीसरे महाबोधि सोसायटी बम्बई के मंत्री थे। प्रवचन सुना। आगामी रविवार को सोसायटी की तरफ से यहीं सिक्कानगर में व्याख्यान रखा है और मुझे अपने विहार में ले जाने के लिए निमंत्रण देकर गए हैं।"
"माज हम बौद्ध विहार में गए। वहां के भिक्षुमो ने बड़ा स्वागत किया। प्रच्छी चर्चा चली। फिर फादर विलियम्स के चर्च में गए। ये सब बम्बई मंदल स्टेशन की तरफ हैं।"
द्रुतगामी पाद-विहारी
प्राचार्यश्री पाद-विहारी हैं; किन्तु उनका कार्यक्रम यान विहारी से द्रुतगामी होता है। एक प्रसंग है-"अाज सिक्कानगर में व्याख्यान हुअा। व्याख्यान के बाद एक 'रशियन' सुन्दरलाल के साथ आया। उसने कहा-"भारतीय लोगों की तरह रशियनों को स्वतंत्रता मे फलने-फूलते का अवसर नहीं मिलता। बड़ा कष्ट होता है।" उसकी बहुत जिज्ञासाएं थीं, पर हमें समय नहीं था। डेढ़ बजे जे. जे. स्कूल ऑफ आर्टस, जो एशिया का सुप्रसिद्ध कला-शिक्षण केन्द्र है, में प्रवचन करने गए। फिर बोरीबन्दर स्टेशन होते हुए लौकागच्छ के उपाश्रय में यति हेमचन्द्रजी, जो दो बार अपने यहाँ
१ वि० सं० २०१० पाश्विन शुक्ला, बम्बई-सिमकानगर २ वि० सं०२०१६ कार्तिक कृष्णा ७, कलकत्ता ३ वि० सं० २०११ प्राश्विन शुक्ला २, बम्बई
वि० सं० २०११माश्विन शुक्ला ३, बम्बई