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अध्याय ] भरत-मुक्ति-समीक्षा
[ २७६ है। इसी प्रकार
लड़ने का एक बहाना है,
दिखलाना चाहता हूं भुजबल। इसकी दूसरी पंक्ति में भी अधिक पदत्व दोष है। परन्तु इस प्रकार के दोष यत्र-यत्र प्रल्पमात्रा में ही हैं, जो सम्भवतः शीघ्रता में प्रकाशित कराने के कारण पुनरावृत्ति न होने से छूट गये हैं।
इसमें भाषा शुद्ध खड़ी बोली है, परन्तु कुछ उर्दू एवं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी कहीं-कहीं पर उपलब्ध होता
उर्दू शब्द-मौका, हजारों, प्राजिजी, सजोश, खामोश और फरमाते आदि। अंग्रेजी शब्द-सीन, फिट और नम्बर प्रादि।
इस काव्य में लोकोक्ति और मुहावरों का प्रयोग बड़ा ही रुचिकर एवं अधिकता से हमा है। इस विषय में निम्न पंक्तियाँ दर्शनीय है
जैसी करनी वैसी भरणी यह पुरानी है प्रथा। उच्च राज-प्रासाद शिखर जो नभ से करते ये बातें। लगता ऐसा मुझे अभी तक रोये तले घेरा है। नहीं नहीं कहते जो मंत्री सोलह माना बात सही। बाहुबली को शासित करना सचमुच हो है टेढ़ी खीर। है दिन दूना रात चौगना जिससे वृद्धिगत उद्योग।
कितनों को उसने नशंस बन दिए मौत के घाट उतार । इसी प्रकार लोहा लेना, दाल न गलना, होश उड़ना, मह पर थूकना, प्राणों मे हाथ धोना, नौ दो ग्यारह होना, गले पर छुरी चलाना आदि और भी अनेक लोकोक्ति-मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुमा है।
कहीं-कहीं खाण्डे (खाँडे), बान्धे (बाँधे), झूझ (जूझ) आदि अशुद्ध शब्दों का प्रयोग प्रखरता है। सम्भवतः ये अशुद्धियाँ शीघ्रता-वश पुनः पाठ के अभाव में रह गई हैं।
इस काव्य में नानाविध वर्णन भी पठनीय हैं। अनेक स्थलों पर प्रकृति-चित्रण बड़ा ही मनोहारी है। वनिता नगरी के पार्श्व में सरयू तट पर तथा वाहीक देश में प्रकृति का अत्यन्त सुन्दर चित्रण हुमा है, उदाहरणतः क्रमश: दो पद्य प्रस्तुत हैं
मसन तणराजि विराज रही, दूर्वा की बह छवि छाज रही, जल-सीकर जिन पर चमक रहे, मानो मुक्ताफल बमक रहे।'
वृक्षों के झुरमुट में मनहर, अति सुन्दरतम लघुतर सरवर, वह मकुर-समुज्ज्वल स्वच्छ सलिल, खिल-खिल कर खिलते हैं उत्पल ।
१ भरत-मुक्ति , पृष्ठ २४ २ वही, पृष्ठ ६०