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अग्नि-परीक्षा : एक अध्ययन
प्रो० मूलचन्द सेठिया बिड़ला पार्टस् कॉलेज, पिलानी
प्रायः ढाई हजार वर्षों से रामचरित भारतीय साहित्य का प्रमुख उपजीव्य रहा है। रामायण की कथा भारत की सीमानों का अतिक्रमण कर बृहत्तर भारत में भी लोकप्रिय रही है, परन्तु डॉ० कामिल बुल्के की यह धारणा तो निर्विवाद है कि "विभिन्न प्राधुनिक भारतीय भाषाओं का प्रथम महाकाव्य या सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ प्रायः कोई 'रामायण' है।" राम-भक्ति का धार्मिक क्षेत्र में अवतरण भी साहित्य के माध्यम से ही हुआ है। डॉ. गोपीनाथ कविराज राम-भक्ति का विशेष विकास पाठवीं शताब्दी ई० के पश्चात् मानते हैं, परन्तु प्राचीनतम उपलब्ध रामकाव्य वाल्मीकि रामायण का रचनाकाल ईमा के छह सो मे चार सौ वर्ष पूर्व के अन्तर्गत माना जाता है। वाल्मीकि के पूर्व भी स्फुट या प्रबन्ध रूप में राम-काव्य की रचना होती रही होगी, लेकिन साहित्य-शोधकों के लिए अब तक वह अप्राप्य है । यह निश्चित है कि राम के अवतार रूप की प्रतिष्ठा और राम-भक्ति के शास्त्रीय प्रतिपादन की अपेक्षा राम-चरित की काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्राचीनतर है। भारतीय लोक-मानस की सम्पूर्ण प्रादर्श-परिकल्पनाएं राम के चरित्र में कुछ इस परिपूर्णता के साथ मुर्तिमन्त हुई है कि 'लोकेश लीलाधाम' राम का पावन चरित्र कवियों के लिए चिरन्तन पावर्षण का केन्द्र रहा है। हो भी क्यों नहीं :
राम तुम्हारा नाम स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाय सहज सम्भाव्य है।
-गप्तजी 'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ना' के अनुसार विभिन्न कवियों को राम के व्यापक चरित्र में अपने मनोनुकल मन्तव्य प्राप्त हो गया है। राम के नाम में ही कुछ ऐसा दुनिवार आकर्षण था कि सम्पूर्ण नाम-रूप के परे अन्तर्ब्रह्म का साक्षात्कार करने वाले निर्गुणिया कबीर 'राम नाम का मरम है पाना' वह कर भी अपने को 'राम की बहग्यिा' घोषित करने का लोभ संवरण नहीं कर सके। वाल्मीकि और स्वयंभू, तुलमी और केशव, कम्बन और कृत्तिवास, हरिपोध और मैथिलीशरण गुप्त द्वारा राम के पवित्र चरित्र का पूर्ण प्रशस्त अभिव्य जन हो चकने पर भी उसके प्रति नये कृतिकागें का आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है।
राम का चरित्र एक ऐसे प्रभा-पुञ्ज की तरह है, जिसके प्रतिफलन के कारण उसके पाश्ववर्ती ग्रह-उपग्रहों के रूप में सीता, लक्ष्मण, भरत, कौशल्या, कैकयी, हनुमान आदि के चरित्र भी अलौकिक आभा से अभिमण्डित प्रतीत होते हैं । आधुनिक कवियों में दिवंगत निरालाजी ने 'राम की शक्ति पूजा' और 'पंचवटी-प्रसंग' में राम के तपःपूत जीवन के कुछ पावन प्रसंगों को चित्रित किया है। श्री बलदेवप्रसाद मिश्र ने 'साकेत सन्त' में भरत और माण्डवी, श्री केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' ने कैकयी और दिवंगत पं० बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने ऊर्मिला के चरित्र को अपने काव्य का केन्द्र-बिन्दु बनाया है। परन्तु राम-कथा के चाहे किसी भी पार्श्व को क्यों न स्पर्श किया जाये, राम की वर्चस्विता तो उसमें बनी ही रहती है । 'साकेत' में कविवर मंथिलीशरण गुप्त ऊर्मिला को नायिका बना कर भी लक्ष्मण को अपने महाकाव्य का नायक नही बना सके । वस्तुतः, राम भारतीय जीवनादर्श के एक पावन प्रतीक बन गये हैं और उनके सर्वांगपूर्ण जीवन में प्रत्येक कवि को अपने अभिप्रेत की प्राप्ति हो जाती है। राम-काव्य की बृहत् शृङ्खला में नवीनतम कड़ी है---प्राचार्यश्री