________________
आचार्यश्री तुलसी के दो प्रबन्ध काव्य
डा०विजयेन्द्र स्नातक एम०ए०, पी-एच०डी०
रोटर, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
नैतिक उत्थान का दिव्य सन्देश * प्राचार्यश्री तुलसी अपने अभिनव अणुव्रत-आन्दोलन के कारण आज भारतवर्ष में एक नएस्वी साधक, मर्यादापालक वीतराग जैनाचार्य के रूप में विख्यात हैं। ध्वंस और विनाश के जिस उद्वेगमय वातावरण में प्राज मंसार सांस ले रहा है, उसमें नैतिक मूल्यों द्वारा शान्ति और समभाव की स्थापना का प्रयत्न करने वाले महापुरुषों में प्राचार्य तुलसी का स्थान अन्यतम है। नैतिक एवं चारित्रिक हास के कारण वर्तमान युग में जीवन के शाश्वत मूल्य का जिस द्रुत गनि मे लोप हुया है, वह समस्त संसार के लिए चिन्ता का विषय बन गया है। एक ओर देश, जाति, धर्म और सम्प्रदाय की सकीर्ण दीवारें खड़ी करके मानवता खंडाशों में टूट-टूट कर विभक्त हो गई है तो दूसरी ओर दुर्धर्ष ध्वंसायुधों के आविष्कार के मन्देह--शंका का भयावह वातावरण विश्व में व्याप्त हो गया है। ऐसे संकट के समय समुची मानवता के लिए सौहार्द, समता, मोख्य और शान्ति का सन्देश देने वाली महान् प्रात्माओं और शाश्वत मूल्यों की स्थापना करने वाले उपायों की आवश्यकता स्पष्ट है। प्राचार्यश्री तुलसी एक ऐसे ही महान व्यक्ति हैं जिनके पाम मानव के नैतिक उत्थान का दिव्य मन्देश है जो अणवत चर्या के रूप में धीरे-धीरे इस देश में फैल रहा है। कहना होगा कि इस शान्त, स्वस्थ एवं निरुपद्रवी आन्दोलन को यदि विश्व के सभी देश स्वीकार कर ले तो व्यक्ति-निर्माण के मार्ग मे राष्ट्र का निर्माण और अन्त में समय मानवता के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
प्राचार्यश्री तुलसी की काव्य साधना के प्रमग में अणुव्रत विषयक दो-चार गब्द मैने जान-बूझकर लिखे है । अणवन का सन्देश प्राचार्यश्री तुलसी के प्रबन्ध काव्यों में भी निहित है, किन्तु कवि ने उसे किसी आन्दोलन की भूमि पर प्रतिष्ठित न कर भावना की उर्वर धरा पर उसका वपन किया है। प्रणवत की अनाविल नैतिकता का बीज स्वाभाविक रूप से उनके काव्यों में अंकुरित हुआ है और उसके द्वारा पाठक की परिष्कृत चेतना दीप्त होती है, ऐसी मेरी धारणा बनी है। प्रणवत-मान्दोलन देश, जाति, धर्म-सम्प्रदाय-निरपेक्ष एकान्त व्यक्ति-साधना होने के कारण सभी विचारशील व्यक्तियों द्वारा समादत हुआ है , फलतः उसके प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलसी के विषय में साधारण जनता का परिचय इसी के माध्यम से हुआ है। प्राचार्यश्री की नैसर्गिक काव्य प्रतिभा से बहुत कम व्यक्तियों का परिचय है, अतः मैं काव्य-प्रतिभा के सम्बन्ध में संक्षेप में परिचय प्रस्तुत करने का प्रयत्न का गा। ज्ञान-क्रिया की समवेत शक्ति
प्राचार्यश्री तुलसी के काफी काव्य-ग्रन्थों को पढ़ कर मैं इस परिणाम पर पहुंचा है कि इन ग्रन्थों के निर्माण में जिस प्रेरक शक्ति का सबल हाथ रहा है, वह इच्छा, ज्ञान-क्रिया की समवेत शक्ति है । इन ग्रन्थों की रचना का उद्देश्य 'यशसे' और 'अर्थकृते' न होकर 'दिव्योपदेश' और 'शिवेनर अनि' ही है। लौकिक एवं पारलौकिक विषयों का व्यवहार झान भी उपदेश की प्रक्रिया में समाया हुआ है । जिस सरल अभिव्यंजना और सहज अनुभूति से वर्ण्य का विस्तार इन काव्य ग्रन्थों में हुआ है, वह इस तथ्य का निदर्शन है कि भोग्य जगत् के प्रति अनासक्त भाव रखने वाले मंत की वाणी में वस्तु