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अध्याय 1
एक सामुद्रिक अययन
से नीचे है, समुन्नत है और शुक्र स्थान भी खासा उभरा हुआ है। हथेली में खड्डा नहीं है।
मस्तिष्क रेखा त्रिशूलाकार से प्रारम्भ होकर गुरु स्थान के नीचे जीवन-शक्ति रेखा से ऊपर, किन्तु अलग प्रथम कुछ दूर सीधी और फिर झुकती हुई है जिसकी एक शाखा चन्द्रस्थान की ओर दूसरी मंगल स्थान की ओर गई है, जहाँ माखिरी सिरा ऊपर बुध की ओर मुड़ा है। हृदय रेखा शनि एवं गुरु स्थान के बीच से प्रारम्भ होती है और बुध स्थान के नीचे हथेली की छोर तक चली गई है। प्रारम्भ में इसकी एक शाखा गुरु-स्थान की ओर बढ़ती है। भाग्य रेखा चन्द्र स्थान के ऊपर से चल कर मस्तिष्क रेखा तक गई है, दूसरी कुछ ऊपर गई है। सूर्य रेखा बड़ी सुन्दर है और भाग्य रेखा से मंगल के मैदान में निकल कर करीब हृदय रेखा के नीचे तक गई है और दूसरी सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा से कुछ नीचे से उठ कर प्रथम सूर्य रेखा के पास चलती हुई सूर्य स्थान तक गई है और जहाँ एक शाला बुध स्थान की पोर भेजती है। दोनों मंगल स्थान से एक-एक रेखा सूर्य स्थान को भाई है जिनमें हथेली के छोर वाले मंगल स्थान वाली रेखा बहुत तीखी एवं स्पष्ट है। सूर्य स्थान के नीचे हृदय रेखा से एक रेखा बुध स्थान की घोर बढ़ी है। मस्तिष्क रेखा से एक रेखा गुरु स्थान की घोर बढ़ी है। जीवन चाक्तिरेखा पुणचे तक गई है और स्थान-स्थान पर इससे भाग्य रेखाएं निकली हैं, जिनमें एक रेखा ठीक गुरु स्थान में गई है। जीवन शक्ति रेखा के बराबर ही अन्दर की घोर एवं रेखा है जीवन शक्ति रेखा से एक रेखा afrat उँगली (मध्यमा) के पास गई है जो विरक्ति रेखा है। दोनों हाथ की उँगुलियों में लगभग छः शुभ चक्र हैं, चार में सीप का आकार है। मध्यमा में सीप का प्राकार है। उँगलियाँ हथेली से छोटी नहीं हैं। हवेली की लम्बाई एवं चौड़ाई प्रायः समान-सी है। प्रारम्भ में सूर्य रेखा ने कुछ ऊपर उठ कर एक शाखा बुध की ओर छोड़ी है और भाग्य रेखा की एक
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(ऊपर खींचा गया हाथ उसी हस्त दर्शन के प्राधार पर है )
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