________________
विशिष्ट व्यक्तियों में अग्रणी
श्री कन्हैयालाल दूगड़
संस्थापक, गांधी विद्यामन्दिर, सरदारशहर प्राचार्यश्री तुलसीरामजी महाराज जैन समाज के उन इने-गिने विशिष्टि व्यक्तियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने समाज को उन्नत करने में प्रथक परिश्रम किया है। प्रणुव्रत पोर नई मोड़ के नाम से जो साधना की नई दिशा मानव समाज को दा है, उसका सारा श्रेय प्राचार्यश्री को ही है । धवल समारोह के उपलक्ष पर मंगल कामना के रूप में मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि वह इनसे भविष्य में भी इसी प्रकार की प्राध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक अनेक सेवाएं ले।
sr
उज्ज्वल सन्त
श्री चिरंजीलाल बड़जाते महापुरुषों का जीवन अनेक विशेषताएं लिए हुए रहता है। उनके जीवन में अलौकिक प्रतिभा और सहनशीलता की भावना पूर्णरूपेण समाई हुई रहती है।
आचार्य तुलसीजी ऐसे ही महापुरुषों में अनोखे हैं। उनकी तेजोमय मुखमुद्रा में मैं बहुत ही प्रभावित हुअा हूँ।
आज पन्द्रह वर्षों से मैं उनके सान्निध्य का लाभ उठा रहा हूँ। सबसे पहले मैंने उनके दर्शन जयपुर में किये। नाम वैसे सुन रखा था। देखने की लालसा थी। आखिर संयोग मिल ही गया। जब देखा, तब उनके तेज और प्रभावकारी मुखमण्डल ने मुझे उनकी ओर खिचने को बाध्य कर दिया और मै निरन्तर उनकी ओर खिचता गया। उनमे प्रभावित होता रहा। उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारने की भरसक कोशिश करता रहा। फिर तो जोधपुर, कानपुर, सरदारशहर, बम्बई आदि कई स्थानों पर उनके दर्शन करने गया। उनके पास जाकर अमृतवाणी मुनकर एक अनिर्वचनीय शान्ति का प्राभास होता है।
भारतीय सांस्कृतिक परम्परा ऐसी ही शान्ति की इच्छुक रही है और इसी में उसके जीवन का रूप मिलता रहा है और तुलसीजी जैसे त्याग और संयमधन संतों के सान्निध्य का लाभ जिमे मिल जाये, उस मनुष्य के तो अहोभाग्य ही समझिये।
उन्हीं की वजह से मैंने अणुव्रत पालन किया। उनके पास जाकर मैंने परिग्रह परिमाण व्रत लिया। सच कहूं तो ऐसा मार्ग उनके पास से मुझे मिला है कि जिसके कारण मेरा जीवन धन्य हो गया है, सफल हो गया है। एक बड़े संघ के प्राचार्य होते हुए भी अभिमान एवं मोह की भावना का लेश मात्र भी उस मानव देहधारी भाचार्य में नहीं और यही कारण है कि तुलसीजी विरोधियों द्वारा भी पूजित होते रहे हैं। वे भी अब उनका स्मरण करते हैं तो इस निष्कलंक व्यक्तित्व के समक्ष अपना सिर झुका लेते हैं।
आज यह अभिनन्दन उनका नहीं, उनके तपःशील जीवन का है। प्राचार्यत्व का है मौर संस्कृति के उत्थापक एवं जलकमलवत् निरपेक्षी स्वयं प्रभु संत का है जिसने जीवन ज्योति जगा कर पीड़ित मानवता को प्रकाश दिया, उसे चलने का मार्ग बताया। जीवन के जीने का मन्त्र सिखाया।
उनके इस अभिनन्दन के अवसर पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें।