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आचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ
[. प्रथम
ठाणा ५ बठे भेज्या छै सो वह सुखसाता का समाचार सारा ही कहसी और बड़ा म्हाराज साहिब महा भाग्यवान प्रबल प्रतापी देवलोक पधार गया सो निजोरी बात है। काल श्रागे कोई को जोर चाले नहीं तीर्थंकर देव ने पिण काल तो छोड़ नही हम विचार करी ने वित्त में समाधि विशेष रावणी चाही जे बाकी जिम कालूगणीराज के प्राप माता छातिम म्हारे पिण माता तुल्य छो जिण सूं कोई बात को विचार करी ज्यो मती और म्हांरा पिण दर्शन देवण रा भाव वेगा ही है। मेवाड़ देश मैं चोनामा दोष हुवा तो पिन गाम में विशेष विचरणो हुवो नहिं तिण सूं घठे विचरवा की धवार जरूरत है तो पिण ब दर्शन देणा जरूरी समझकर द्रव्य, क्षेत्र काल-भाव देखकर दर्शन बेगा ही देवारा भाव है। पिण दूर को काम है। आाणो बेंत सू होसी । तिण से पहली सत्यनेि मेल्या है सो जाणीज्यो धौर तपस्या शरीर की शक्ति देख-देख कर करीज्यो और वित्त समाधि में घणो राखज्यो। सं० १९६३ मृगशिर यदि २ सोमवार ।
मेवाड़ में तथा मारवाड़ में बिहरमाग साधु सनियां सूं यथायोग ने सबकी बार घटीने नहीं बोलाया तिप साधु सत्यों के दिल में खासी श्राइ हुवेला । थॉरी कोइ बात म्हारे भी दिल में आवे है । पर जियाँ अवसर हुवे वियाँ ही करणो पड़े । बाकी बढ़े रहकर भी शासन को काम करो हो ग्रही म्हारी ही सेवा है। अबकी बार साधु-सत्या म्हारी दृष्टि देखकर सार्वजनिक प्रचार में केइ जग्याँ प्राली मिहनत करी, ई बात की मनै प्रसन्नता है । सारों ने ही चाहिजे कि श्रापणी हद में रहता हुवां धर्म को व्यापक प्रचार हुवं । धर्म एक जाति विशेष में वंध्यो नहीं रह सके है । मेवाड़ सार्वजनिक प्रचार को आछो क्षेत्र है सो पूरी मिहनत हुगी चाहिजे । श्रावका ने भी पूरी चेष्टा करनी चाहिजे । सारा ही संत सत्याँ माछी तरह में धानन्द में रहीज्यो अठे घणो धानन्द है। शेष समाचार शिष्य मिठालाल केवेला वि० संवत् २००८ फा० व० १० सरदारशहर।
तुलसी गणपति नवमाचार्य
सौराष्ट्र में विहरमाण चन्दनमुनि सूं वंदना तथा सुवमाता बंचे। सौराष्ट्र में पाप प्राछो उपकार कर रहा हो. प्रसन्नता की बात है । इधर में आपको स्वास्थ्य कुछ कमजोर मुण्यो तथा रात मैं नींद कम श्रावै इसी सुणी तिण सूं कुछ विचार हुयो । देशान्तर में विचरणे वाला साधुवाँ को शरीर ठीक रेणे सूं म्हारे भी दिल में तसल्ली रेवे । काम भी प्राछो बाकी आपके शरीर ने वो देश नहीं माने तो आप कहवा दीज्यो में विचार वाँगा शिष्य पूनम शिष्य उगम आदि सर्व संता मूं भी सुखसाता बंचे। सारा ही संत घणी चित्त समाधि मूं रहोज्यो । तन मन सूं घणे राजी हेत मूं काठियावाड़ में मिह्नत करज्यो, उपकार हो तो लखावे है। सारा ही संता की मिह्नत पर म्हारो चित्त प्रसन्न है। अठे कानमलजी स्वामी तथा पाजी, गुलाबांजी ने भेज्या है । प्रठे की मुखसाता का सारा ही समाचार कहसी । इधर में म्हारे त्रिवार्षिक देशाटन से शामन को अच्छो उद्योत हुयो है सो जागमी । सं० २००८ पो० ० ८ भादरा ।
तुलसी गणपति नवमाचार्य
जेष्ठ सहोदर चम्पालालजी स्वामी, वदनांजी तथा लाटांजी हूं यथायोग्य वंदन मुखसाना वर्ष घरंच भाजपौणी दस वयां आसरं पणी मुखसाता सहीत फूलासर पहुंच्या सवारे घठं सूं बिहार कर के धागे जावण रा भाव है और बदनांजी के घबै ठीक ही हुवेला तरतर कमजोरी मिटकर शक्ति भावेला । आप तीनों के ला रह को सायत पहिलो ही मोको हैं, घणो आछो संजोग मिल्यो है । माता नै संजम की स्हाज देवणो यो एक पुत्र-पुत्री के वास्ते उऋण होने को मोको है । मनै पिण इं बात को घणो हर्ष है। अब वदनॉजी के जल्दी ठीक हुणे मूं विहार करके श्राइज्यो ।
घणी जल्दी करीज्यो मती, कारण रहणी तो हो ही गयो। पणी सपनों के चित्त मैं पणी समाधि हुवे धौर सर्व मंत्र सत्यां १२ फूलासर ।
पण चित्त समाधि रासोज्यो। वदनौजी के समाधि हु मूं यथायोग्य वंदनां मुखसाता बर्ष सं० २००२ [फा०] यदि
तुलसी गणपति