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नैतिकता के पुजारी
श्री लालबहादुर शास्त्री
स्वदेश मन्त्री, भारत सरकार प्राचार्यश्री तुलसी नैतिकता के पुजारी हैं, अहिंसा जिसका मूलाधार है। सभा, सम्मेलन और साहित्य-निर्माण प्रादि के द्वारा उन्होंने एक नये प्रान्दोलन को सम्बल प्रदान किया है। अणुव्रत-आन्दोलन ने प्रत्येक वर्ग को अपनी मोर खींचने का प्रयास किया है और जैन समुदाय पर स्वभावतः इसका विशेष प्रभाव पड़ा है । नैतिकता उपदेशों से कम, उदाहरण से ही पनपती है। प्राचार्यश्री तुलसी स्वयं उस मार्ग पर आचरण कर दूसरों को उस मोर प्रेरित करना चाहते हैं। उनका अभिनन्दन इसी में है कि लोग उनके इस आन्दोलन के स्वरूप को समझे और अपने जीवन को एक नये रूप में ढालने का प्रयास करें।
मानव-जाति के अग्रदूत
न्यायमूर्ति श्री भुवनेश्वरप्रसाद सिन्हा
मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय भारतवर्ष यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि प्राचार्यश्री तुलसी को तेरापंथ संघ के प्राचार्य-काल के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है । अणुव्रत आन्दोलन का, जो कि वर्तमान में न केवल भारतवर्ष के लिए अपित समग्र विश्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है, प्रारम्भ प्रापके प्राचार्यकाल की विशिष्ट देन है । इस आन्दोलन का उद्देश्य है-सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्यों के प्रति मनुष्यों की श्रद्धा को उबुद्ध करना तथा इन मूल्यों को पुन: प्रतिष्ठित करना। इस महान् प्राचार्य ने न केवल उपदेश से अपितु अपने आचरण के द्वारा प्रामाणिकता, सच्चाई और व्यापक अर्थ में चारित्रिक दृढ़ता जैसे उच्च सद्गुणों को मूर्त रूप दिया है । इसलिए जहाँ तक भारतीय संस्कृति के विलक्षण तत्त्व सत्य-अहिंसा जैसे मौलिक सिद्धान्तों के प्रसार का प्रश्न है, ये महान् प्राचार्य केवल जैन धर्म के सीमित दायरे में ही नहीं, अपितु समग्र मानव-जाति के अग्रदूत हैं । मानव-जाति के कल्याणार्थ प्राचार्य तुलसी दीर्घायु हों।