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अध्याय 1
माधुनिक युग के ऋषि
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विज्ञान अपने आप में प्रशस्त है, पर प्रश्न है उसके प्रयोग का। प्रयोग करने वाला मनुष्य है, इसलिए सबसे पावश्यक अब यही है कि मनुष्य को कैसे बदला जाये और कौन बदले? कैसे बदला जाये, इसका उत्तर है, मनुष्य के संस्कार बदले जायें; और कोन बदलेगा, इसका उत्तर है, ऋषि-महर्षि, साधु-संत। इसलिए आज विज्ञान के युग में, जहाँ सर्वनाश खड़ा है, साधु-संतों का मूल्य और भी बढ़ जाता है। प्राज मानव-सृष्टि का कल्याण इन्हीं के हाथों सुरक्षित है।
आज लोगों के मन में यह शंका होने लगी है कि नैतिकता का कोई मूल्य है भी या नहीं और समाज को उससे कुछ लाभ भी होगा या नहीं? क्योंकि आज चारों ओर विकास के साथ-साथ भ्रष्टाचार और अनैतिकता का भी फैलाव होता जा रहा है। मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। जनता को यह सोचने को मजबूर कर दिया गया है कि नैतिकता हमारा संरक्षण और अनैतिकता का मुकाबला कर भी सकेगी या नहीं या समाज में जीने के लिए अनैतिकता का प्राश्रय ही लेना पड़ेगा । पर जरा गंभीरतापूर्वक सोचने पर लगता है कि नैतिकता के बिना एक क्षण भी समाज चल नही सकता। यही बन्धन समाज को एक तत्त्व में पिरोये हुए है। यदि यह बन्धन टूट गया तो न तो समाज रहेगा, न भ्रष्टाचार रहेगा।
नैतिकता का प्रभाव समाज में क्या है और कितना है, यह नापा नहीं जा सकता। बल्कि इसका प्रवाह लोगों के दिलों में निरन्तर बहता रहता है। कभी धाग वेगवती हो जाती है, कभी मन्द पड़ जाती है। माध-संतो के, महापुरुषो के प्रभाव में यह बढ़ती-घटती रहती है। प्राज विनोबा के प्रभाव ने लोगों में कई हजार ग्रामदान दिलवा दिगा, जो इतिहास की मर्वथा अभूतपूर्व घटना है। इसी तरह प्राचार्यश्री तुलमी जो कार्य कर रहे है. उसका प्रभाव ममाज पर पड़ रहा है। हजारों लोगों का जीवन उन्होंने बदला है। पैदल ही नंगे पाँव सारे देश का भ्रमण कर रहे हैं।
वे हैं, पर नहीं हैं
मुनिश्री चम्पालालजी (सरदारशहर)
वे शासक है, उन्होंने अनुशासन किया है, पर तलवार से नहीं, प्यार से। वे आलोचक हैं, उन्होंने कड़ी आलोचनाएं की हैं, पर धर्म की नहीं, धर्म के दम्भ की। बे वैज्ञानिक हैं, उन्होंने अनेक प्राविष्कार किये हैं, पर हिंसक शस्त्रों के नहीं, शान्ति के शस्त्रों के। वे क्रान्तिकारी हैं, उन्होंने बगावत की है, पर पापियों के विरुद्ध नहीं, पापों के विरुद्ध । वे चिकित्सक हैं, उन्होंने सफल चिकित्सा की है, पर मानव के तन की नहीं, मन की। वे द्रष्टा हैं, उन्होंने सब के सुख-दुःख को देखा है, पर तुला से तोलकर नहीं, स्वयं से तोलकर । वे युगपुरुष हैं, उन्होंने युग को नई मोड़ दी है, पर औरों को मोड़कर नहीं, पहले स्वयं मुड़कर ।