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अमा में प्रकाश किरण
महासती श्री लाडांजी
प्राचार्यश्री तुलसी अमा के सघन निशीथ में प्रकाश किरण लेकर पाये। तब जनता जड़ता की नींद में डूबी हुई थी। आपने तिमिर की गोद में सोये हुए एक-एक व्यक्ति को सहलाया, जागे हुए को पथ बतलाया । पथिक को प्रकाश दिखाया, प्रकाशित पथ वालों को मंजिल की निकटता का आभास दिया। इसीलिए जन-मानस पापको अमा में प्रकाश किरण मानता है। पापने प्रात्म-मालोक में स्वयं को पहचाना, तत्पश्चात् अपनी ही अनुभूतियों को जनता तक पहुँचाया, जिसे जनता अपनी ही अनुभूति मान लीन हो रही है । पथ-दर्शन पा रही है। आपका दिव्य पालोक अनेक रूपों में निखरा । प्रज्ञानियों के लिए ज्ञान का प्रक्षय कोष बन कर पाया। संघीय विद्या-विकास प्राज आपको सरस्वती पुत्र के रूप में देग्य रहा है। अनैतिक जीवन जीने वालों को सुगम साधना का पथ दिखाया। साधना मे कतराने वालों का साहस बढ़ाया। संयम को अनावश्यक समझने वालों की मान्यता का परिष्कार किया, दानवीय वृत्तियों से लोहा लिया। सदाचार और सहनीति की नई व्याख्या दी और एक ही वाक्य में कहें तो आपने दिग्मूढ मानव को राजपथ दिखलाया।
आज कृतज्ञ मानव समाज आपके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। आपको पाकर जगत गौरवान्वित है। आप जैसे जगत बन्ध को बन्ध रूप में प्राप्त कर मैं विशेष रूप से गौरवान्वित हैं।
शत बार नमस्कार
श्री विद्यावती मिश्र
करता है आज युग तुम्हें शत बार नमस्कार !
गत वार नमस्कार !! भूले हुए पथी को तुमने राह दिखायी, फिर ध्येय-प्राप्ति की पुनीत चाह जगायी, ऐसा लगा कि लक्ष्य धाम ही रहा पुकार !
शत बार नमस्कार !! तुमने न बहुत ही बड़े आदर्श सजाये, पाररा से छू के लोह भी हैं स्वर्ण बनाये, भय-शोक-ग्रस्त विश्व को तुमने लिया उबार !
शत बार नमस्कार !! चाहे जो पाये इसमें कोई रोक नहीं है, ऐसा सुरम्य अन्य कोई लोक नहीं है, तम तोम कहाँ ज्योति राशि का हुआ प्रसार!
शत बार नमस्कार !!