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संत-फकीरों के अगुआ
बेगम प्रलीजहीर अध्यक्षा, समाज कल्याण बोर्ड, उत्तरप्रदेश
यह जानकर निहायत खुशी हुई कि प्राचार्यश्री तुलसी धवल समारोह समिति प्रणवत-प्रान्दोलन के रहनूमा प्राचार्यश्री तुलसीजी का अभिनन्दन समारोह मनाने जा रही है और उनकी शान में एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी तैयार कर रही है।
प्राचार्यश्री तुलसी हमारे देश के उन मंत-फकीरों के अगुपा हैं, जिन्होंने इस बात को महसूस किया कि देश की प्राजादी को कायम रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हमारे देश के रहने वालों का नैतिक और चारित्रिक स्तर ऊंचा हो । इसके बिना किसी तरह से हमारी असली तरक्की मुमकिन नहीं है । इसलिए उन्होंने अपने साढ़े छ: सौ शिष्य साधुनों और साध्वियों का रुझान इस ओर खींचा कि सारे देश का ध्यान अणुव्रत-आन्दोलन के असूलों की ओर खींचने में जुट जानो। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने तेरापंथ समाज के साथ सारे देश को यह महसूस कराया कि प्रणवत के असूलों पर चलना हमारे लिए बहुत जरूरी है।
एक बार जब अणुव्रत-आन्दोलन का सालाना जलसा सन् १९५७ में सुजानगढ़ (राजस्थान) में हुधा तो उत्तरप्रदेशीय अणुव्रत समिति के संयोजक ने हमें भी उसमें भाग लेने की दावत दी। यह पहला मौका था जब हमने नजदीक से प्राचार्यश्री तुलसी और उनके विद्वान् व बहुत-सी विद्याओं व हुनरों में माहिर शिष्यों, साधुनों और साध्वियों को देखा। ये सभी अच्छे-अच्छे घरों के थे और सारे दुनियावी सुखों को छोड़ कर इस नये सुख की दुनिया में मा चुके थे, जिसे हम रूहानी जिन्दगी का सुख कहते हैं।
प्राचार्यश्री तुलसी से मिलने पर हमने देखा कि वे सही माने में एक फकीर की जिन्दगी बसर करते हए इस बात की कोशिश में जुटे हुए हैं कि हमारी तरक्की के साथ-साथ सारी दुनिया की तरक्की हो। यही वजह है कि हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई सभी लोग उनके बताये हुए अणुव्रत के असूलों को पसन्द करते हैं।
आज के जमाने में हम इन्सान का आर्थिक स्तर तो ऊंचा करने में जुटे हुए हैं, लेकिन उसके मुकाबले में उसके जीवन का स्तर ऊंचा करने की कितनी कोशिश हम कर रहे हैं, यह सोचने की बात है। हम अपने देश की तरक्की के लिए पंचवर्षीय योजना चला रहे हैं, लेकिन पंचवर्षीय योजनाओं की कामयाबी के लिए जरूरी है कि देश में रहने वालों का नैतिक और चारित्रिक स्तर काफी ऊंचा हो। इसके बिना देश में राष्ट्रीय चेतना नहीं जाग सकती है।
यह तो सभी लोग जानते है कि सच बोलना चाहिए, किसी को सताना नहीं चाहिए, दुनिया भर की दौलत बटोरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि कितने लोग इस बात पर अमल करते हैं ? प्राचार्यश्री तुलसी का आन्दोलन महज लेक्चर देने का या नसीहत देने का आन्दोलन नहीं है, बल्कि यह उन बातों पर अमल करने का पान्दोलन है। प्राचार्यश्री तुलसी और उनके शिष्य खुद महाव्रतों का पालन करते हुए हरएक को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश करते हैं कि कम-से-कम लोग अणुव्रतों पर चलने का अहद करें। इसके लिए वे, जो लोग इन प्रसूलों को पसन्द करते हैं, उनसे प्रतिज्ञा-पत्र भरवाते हैं कि कम-से-कम एक साल वे इन असूलों पर जरूर चलेंगे। इस तरह से यह महज कहने की नहीं, बल्कि करने की तहरीक़ है, जगने और जगाने की तहरीक है, नामुमकिन को मुमकिन बना देने की तहरीक है। प्राचार्यश्री तुलसी ने मरीज इंसान की नब्ज को अच्छी तरह से समझा है। उसे इंसानियत का पैगाम किस