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महान् धर्माचार्यों की परम्परा में
श्री पी० एस० कुमारस्वामी
भूतपूर्व राज्यपाल, उड़ीसा जब मैं यह सोचता हूँ कि मानव जन्म कितना दुर्लभ है और वह भी भारत जैसी पुण्य भूमि में, तो मेरा मस्तिष्क महान विचारों से भर उठता है । यह हमारे देश का सौभाग्य है कि समय-समय पर इसमें महान् विवेकी पुरुषों ने जन्म लिया है और उन्होंने हमारे धर्म पर चढ़े हुए मैल को धोया है तथा लोगों को सही मार्ग दिखाया है। वास्तव में ऐसे पुरुषों ने देश की कीति को पालोकित किया है और उनके विचारों ने सभी के हृदय को प्रभावित किया है। यह भव्य परम्पग वैदिक युग मे प्रारम्भ हुई। जैन और बौद्ध धर्म के संस्थापकों ने भी हमको ज्ञान का प्रकाश प्रदान किया है और उनके बाद भी ऐसे सुप्रसिद्ध महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने इस देश की प्राध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि की है। आज भारत के लिए यह समझा जाता है कि वह मानव-कल्याण के लिए अपना नैतिक योग दान देने में समर्थ है तो इसका कारण यही है कि भूतकाल में संतों और ऋषि-मुनियों ने भारत के लोगों को प्राध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न बनाया था।
इस परम्परागत ज्ञान और विवेक का प्राधार यह विचार है कि सद् विचार, सद्ज्ञान और सदाचार से सुख की प्राप्ति होती है। मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि यही शाश्वत और प्रेरक सन्देश प्रणुव्रत-आन्दोलन का भी मूलाधार है जिससे जीवन की शुद्धि होती है और दैनिक मानव-व्यवहार में नैतिकता और सत्य का समावेश होता है। वर्तमान समय में जब मानव मन भौतिकवाद के जाल में फंस रहा है, हमें अपना पथ पालोकित करने के लिए एक व्यावहारिक और प्रेरक धर्म की आवश्यकता है। प्राचार्यश्री तुलमी उपयुक्त अवसर पर अवतरित हुए हैं। वे हमारे महान धर्माचार्यों की परम्परा में है । ये हमें सद्विचार और सदाचार का मार्ग दिखा रहे है।
आज जगत की क्या अवस्था है, यह किसी से छुपा हुमा नहीं है। हमारे देश ने भी यदि वर्तमान प्रसंस्कारी विचारधारानों को अपनाया होता तो वह बुरे मार्ग पर चल पड़ता। किन्तु सौभाग्य से महात्मा गांधी ने हमारी समाजनीति को प्रभावित किया। उन्होंने हमारी राजनीति को आध्यात्मिक रूप देने का प्रयाम किया और हमें गहित भौतिकवाद में बचा लिया। मुझे विश्वास है कि अणुव्रत-मान्दोलन भी अहिंसा, सत्य, स्वावलम्बन और स्वार्थ-त्याग पर बल दे कर राष्ट्र का कल्याण सिद्ध करने के लिए कठोर परिश्रम करेगा। ये सिद्धान्त किसी एक धर्म की बपौती नहीं हैं, मभी धर्म उनको मान्यता देते हैं । यह हो सकता है कि कोई धर्म उनके पालन पर न्यूनाधिक बल देता हो।
मुझे यह ज्ञात हुआ है कि प्राचार्यश्री तुलसी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के नवम प्राचार्य है। इससे मुझे ख्याल पाना है कि जैन धर्म का कितना व्यापक प्रचार रहा है । उसके प्राचीन और उदात्त सिद्धान्तों ने अकबर जैसे महापृरुषों को और आधुनिक काल में महात्मा गांधी को भी प्रेरणा दी है। जैन जीवन-दृष्टि राष्ट्रीय दृष्टिकोण का अंग ही बन गई है। अतः यह कोई पाश्चर्य की बात नहीं है कि जैन माहित्य और उसकी कलात्मक परम्परा भारतीय संस्कृति के ममकक्ष बन गई है।
यह मैं इसलिए कहता है कि दक्षिण भारत में भी जैन ग्रन्थकारों ने तमिल साहित्य को समृद्ध बनाया है। इससे प्रकट होता है कि उन्होंने इस क्षेत्र की भाषा को अपने धर्म की महत्ता और सन्देश का माध्यम बनाने में कोई हानि नही समझी। कला और नैतिकता के क्षेत्र में जैनों की उपलग्धियां भौर जीवन के इस क्षेत्र में जन समाज की उल्लेखनीय