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माचार्य मी तुलसी प्रभिनयम प्रग्य
[ प्रथम
अधिकाधिक सफलता
प्राचार्यश्री के उस प्रथम दिल्ली-प्रवास में राजधानी के कोने-कोने में अणुव्रत-अान्दोलन का सन्देश पूज्यश्री के प्रवचनों द्वारा पहुंचाया गया और दिल्ली से प्रस्थान करने से पूर्व ही उसके प्रभाव के अनकल पामार भी चारों ओर दीखने लग गए थे । राजधानी के अतिरिक्त प्रामपास के नगरों में आन्दोलन का सन्देश और भी अधिक तेजी गे फैला । यह प्रकट हो गया कि तपस्या और साधना निरर्थक नहीं जा सकती। विश्वास, निष्ठा और श्रद्धा अपना रंग दिखाये बिना नहीं रह सकते। रचनात्मक और नव-निर्माणात्मक प्रवृत्तियों को असफल बनाने के लिए कितना भी प्रयत्न क्यों न किया जाये, वे असफल नहीं हो सकतीं । अणव्रत-आन्दोलन का १०-१२ वर्ष का इतिहास इम नथ्य का माक्षी है कि कोई भी लोककल्याणकारी शुभ कार्य, प्रवृत्ति अथवा आन्दोलन असफल नहीं हो सकता। राजधानी की ही दष्टि से विचार किया जाये तो प्राचार्यश्री की प्रत्येक दिल्ली-यात्रा पहली की अपेक्षा दुमरी, दूसरी की अपेक्षा तीसरी और तीसरी की अपेक्षा चौथी अधिकाधिक सफल, आकर्षक और प्रभावशाली रही है। राष्ट्रपति-भवन, मन्त्रियों की कोठियों, प्रगामकीय कार्यालयो और व्यापारिक तथा प्रौद्योगिक संस्थानों एवं शहर के गली-कूचों व मुहल्लों में अणुव्रत-आन्दोलन की गूंज ने एक-मरोग्या प्रभाव पैदा किया। उसको साम्प्रदायिक बता कर अथवा किसी भी अन्य कारण से उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकी और उसके प्रभाव को दबाया नहीं जा सका। पिछले बारह वर्षों में पूज्य प्राचार्यश्री ने दक्षिण के मियाय प्रायः सारे ही भारत का पाद-विहार किया है और उसका एकमात्र लक्ष्य नगर-नगर, गाँव-गाँब तथा जन-जन तक अणुव्रत-अान्दोलन के सन्देश को पहुँचाना रहा है। राजस्थान से उठी हुई नैतिक निर्माण की पुकार पहले राजधानी में गूंजी और उसके बाद सारे देश में फैल गई। राजस्थान, पंजाब, मध्यभारत, मध्यप्रदेश, खानदेश, बम्बई और पूना; इसी प्रकार दूसरी दिशा में उत्तरप्रदेश बिहार तथा बंगाल और कलकत्ता की महानगरी में पधारने पर पूज्य आचार्यश्री का स्वागत तथा अभिनन्दन जिम हार्दिक समारोह व धूमधाम से हुआ, वह सब अणुव्रत-आन्दोलन की लोकप्रियता, उपयोगिता और प्राकर्षण शक्ति का ही मूचक है।
मैंने बहुत ममीप से पूज्य प्राचार्यश्री के व्यक्तित्व की महानता को जानने व समझने का प्रयत्न किया है। ग्रणप्रत-पान्दोलन के साथ भी मेरा बहुत निकट-सम्पर्क रहा है। मुझे यह गर्व प्राप्त है कि पूज्यश्री मुझे 'प्रथम प्रणवती' कहते हैं। प्राचार्यश्री के प्रति मेरी भक्ति और प्रणवत-अान्दोलन के प्रति मेरी अनुरक्ति कभी भी क्षीण नहीं पड़ी। प्राचार्यश्री के प्रति श्रद्धा और अणुनन-आन्दोलन के प्रति विश्वास और निष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि ही हुई है। महात्मा गांधी ने देश में नैतिक नव निर्माण का जो मिलसिला शुरू किया था, उगको प्राचार्यश्री के अणवत-पान्दोलन ने निरन्तर प्रागे ही बढ़ाने का मफल प्रयत्न किया है। यह भी कुछ अत्युक्ति नहीं है कि नैतिक नव-निर्माण की दृष्टि मे पूज्य प्राचार्यश्री ने उसे और भी अधिक तेजस्वी बनाया है। चरित्र-निर्माण हमारे राष्ट्र की सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण समस्या है। उसको हल करने में अणुव्रत-पान्दोलन जैसी प्रवृत्तियाँ ही प्रभावशाली ढंग से मफल हो सकती हैं, यह एकमत से स्वीकार किया गया है। राष्ट्रीय नेतानों, सामाजिक कार्यकर्तामों, विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रवक्तामो और लोकमत का प्रनिनिधित्व करने वाले समाचार-पत्रों ने एक स्वर से उमके महत्त्व और उपयोगिता को स्वीकार किया है। संत विनोबा का भूदान और पूज्य आचार्यश्री का अणुव्रत-पान्दोलन, दोनों का प्रवाह दोनों के पादविहार के साथ-साथ गंगा और जमुना की पुनीत धारापों की तरह सारे देश में प्रवाहित हो रहा है। दोनों की अमृतवाणी सारे देश में एक जैसी गंज रही है और भौतिकवाद की पनी काली घटायों में विजली की रेखा की तरह चमक रही है। मानव-ममाज ऐसे ही संत महापुरुषों के नव जीवन के प्राशामय सन्देशों के सहारे जीवित रहता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में जब प्रणबमो और महाविनाशकारी साधनों के रूप में उसके द्वार पर मृत्यु को खड़ा कर दिया गया है, तब ऐसे संत महापुरुपों के अमृतमय सन्देश की और भी अधिक आवश्यकता है। प्राचार्य प्रयर श्री तुलसी और संत-प्रवर श्री विनोबा इस विनाशकारी यग में नव जीवन के अमृतमय सन्देश के ही जीवन्त प्रतीक हैं । धन्य हैं हम, जिन्हें ऐसे मंत महापुरुषों के समकालीन होने और उनके नैतिक नव-निर्वाण के अमृत सन्देश सुनने का मौभाग्य प्राप्त है !
प्रणवत-प्रान्दोलन के पिछले ग्यारह-बारह वर्षों का जब में मिहाबलोकन करता है, तब मुझे सबसे अधिक