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करत सेव सची जननीतणी। हम जजै पदपद्मशिरोमणी ॥१॥
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णदशम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्धं नि० शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये । जनममंगल तादिन मानिये ॥ हरि तबै गिरिराज बिर्षे जजे, हम समर्चत आनंदको सजे ॥२॥ ___ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्दश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्ध नि० ॥२॥
तप धरे सितमाघ तुरी भली । निज सुधातम ध्यावत हैं रली॥ Fi हरि फनेश नरेश जजे तहां । हम जजै नित आनंदसों इहां ॥३॥
____ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्दश्यां निःक्रममहोत्सवमण्डिताय श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय अभ्य ॥ विमल माघरसी हनि घातिया। विमलबोध लयो सब भासिया ॥ विमल अर्घ चढ़ाय जजों अब । विमल आनंद देहु हमैं सबै ॥४॥ ___ॐ हीं माघशुक्लषष्ठयां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्व० भ्रमरसादरसी अति पावनों। विमल सिद्ध भये मनभावनों॥
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