________________
et-tottot.tet-tot-t-tantrkut.titutetot-tsts.kotsts248222122248
न गुन जु तेम ॥ पुनि दरवछेन अर काल भाव । निच्छेप चार विधि इमि जनाव ॥ १३ ॥
इनको समस्त भाष्यौ विशेष । जा समुझत भ्रम नहिं रहत लेश ॥ निज शानहेत ये मूलमंत्र तुम भाषे श्रीजिनवर सु तंत्र ॥१४॥ इत्यादि तत्वउपदेश देय । हनि शेषकरम निरवान लेय ॥ गिरवान जजत बसु दरख ईश । वृन्दावन नितप्रति नमत सीश ॥१५॥
घतानंद छंद। श्रेयांस महेशा सुगुनजिनेशा, वज्र धरेशा ध्यावतु हैं। हम निशदिन बंदै पापनिकंदै, ज्यों सहजानंद पावतु हैं ॥ १६ ॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।।
सोरठा-जो पूजै मनलाय, श्रेयनाथपदपद्मको॥ पावै इष्ट अघाय, अनुक्रमसौं शिवतिय वरै॥ १ ॥
इत्याशीर्वादाय पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
% 3D%
3D