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समुच्चयचतुर्विंशतिजिनपूजा
छंद कवित्त। वृषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पदम सुपास जिनराय । चंद पुहुप शीतल श्रेयांस नमि, वासुपूज पूजितसुरराय ॥ विमल अनंत धरम जस उज्जवल, शांति कुंथु अर मल्लि मनाय । मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्वप्रभु, वर्द्धमानपद पुष्प चढ़ाय ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीवृपभादिवीरान्तचतुर्विशतिजिनसमूह अत्र अवतर अवतर । संवौषट् । । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तचतुर्विंशतिजिनसमूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीबृपभादिवीरान्तचतुर्विशतिजिनसमूह अत्र मम सन्निहितो भव भव । वपट् ॥
अष्टक। चाल द्यानतरायकृत नंदीश्वरद्वीपाष्टककी तथा गरवारागआदि अनेक चालोमें बनता है। मुनिमलसम उज्ज्वल नीर, प्राशुक गंध भरा। भरि कनककटोरी धीर, दीनों धार धरा ॥
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