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श्रीफल केला आदि अनूप । लै तुम अग्र धरों शिवमूप ॥ --- दयानिधि हो, जयजगबंधु दयानिधि हो। तुम०॥८॥ ____ॐ हीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व पामीति ॥८॥ आठों दरखसाजि गुनगाय । नाचत राचत भगति बढ़ाय ॥
दयानिधि हो, जयजगबंधु दयानिधिहो.॥ तुम०॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्थ्यपदप्राप्तये अयं निर्व पामीति ॥६॥
पञ्चकल्याणक ।
छंद द्रुतिविलंवित तथा सुन्दरी (वर्ण १२)। सुकलभादवछट्ट सुजानिये । गरभमंगल तादिन मानिये ॥ करत सेव सची रचि मातकी। अरघलेय जजों वसुभांतिकी॥१॥ ___ ॐ हीं भाद्रपदशुक्लापष्ठिदिने गर्भमङ्गलमंडिताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अधं ॥१॥ सुकलजेठदुवादशि जन्मये । सकल जीव सु आनँद तन्मये॥ त्रिदशराज जजै गिरिराजजी। हम जजै पद मंगल साजजी॥२॥