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शीतचंदन कदलिनंदन, सुजलसंग घसायकैं।
ह सुगंध दशोंदिशामैं, भ्रमैं मधुकर आयकैं॥क० ॥२॥ ॐ हीं श्रीअभिनन्दनजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामि ॥
हीरहिमशशिफेनमुक्ता, सरिस तंदुल सेत हैं। __ तासको ढिग पंज धारौं, अछयपदके हेत हैं ॥ क० ॥३॥ ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामि । समरसुभटनिघटनकारन, सुमन सुमनसमान हैं।
सुरमिते जा करै झंकार, मधुकर आन हैं ॥क० ॥४॥ ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दनजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामि ॥ सरस ताजे नव्य गव्य मनोज्ञ, चितहर लेयजी।
छुधाछेदन छिमाछितिपतिके, चरन चरचेयजी ॥ क० ॥५॥ ॐ ही श्रीअभिनन्दनजिनेन्द्राय शुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि० ॥