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ॐ ह्री श्रीशंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्रावतरावतर । संवौपट् ॥ ॐ ह्रीं श्री शंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः॥ ॐ ही श्रीशंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव ।वपट् ॥
___ अष्टक ।
छंद चौधोला तथा अनेक रागोमे गाया जाता है। मुनिमनसम उज्जल जल लेकर, कनक कटोरीमें धारा। जनमजरामृतुनाशकरनकों, तुमपदतर ढारों धारा ॥
शंभवजिनके चरन चरचतें, सब आकुलता मिट जावै। HAI निजनिधि ज्ञानदरशसुखवीरज, निरावाध भविजन पावै ॥१॥ ___ ॐ ह्री श्रीशंभवजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वामि० ॥ तपतदाहकों कंदन चंदन मलयागिरिको घसि लायो। जगवंदन भौफंदनखंदन समरथ लखि शरनै आयौ ॥२०॥२॥
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