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अगरादिकचूरन परिमलपूरन खेवत क्रूरन कर्म जरै। दशहूं दिशि धावत हर्ष बढ़ावत अलिगुणगावत नृत्य करै॥श्री०॥ ___ ॐ ह्रीं श्रीअजितजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि० ॥ बादाम नरंगी श्रीफल चंगी आदि अभंगीसौं अरचौं। सब विघनविनाशै सुखपरकाशै आतम भासै भौविरचौं ॥श्री० ॥८॥ ___ॐ हीं श्रीअजितजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि०॥' जलफल सब सज्जे बाजत बज्जै गुनगनरज्जै मनमज्जै । तुअपदजुगमज्जेसजन जज्जै ते भवभज्जै निजकज्जै॥श्री॥६॥ ॐ हीं श्रीअजितजिनेन्द्राय अनर्थ्यपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामि० ॥ ६॥
पंचकल्याणक ।
छंद द्रुतमध्यकं १६ मात्रा। जेठ असेत अमावशि सो है। गर्भदिना नँद सो मनमोहै। इंद फनिंद जजे मनलाई । हम पद पूजत अर्घ चढ़ाई ॥१॥