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ॐ हीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ मालिनी---सुख, धन,जस, सिद्धि पुत्रपौत्रादि वृद्धि । सकल मनसि सिद्धि होतु हे ताहि रिद्धि ॥ जजतहरपधारी नेमिको जो अगारी। अनुक्रम अरिजारी सो वरे मोच्छ नारी ॥१६॥ इत्याशीर्वादः ।
श्रीपार्श्वनाथपूजा। प्रानतदेवलोकतें आये, बामादे उर जगदाधार। अश्वसेन सुतनुत हरिहर हरि, अंक हरिततन सुखदातार ॥ जरतनाग जुगबोधि दियो जिहि, भुवनेसुरपद परमउदार । ऐसे पारसको तजि आरस, थापि सुधारस हेत विचार ॥१॥ ___ॐ हीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् । अन तिष्ठ तिष्ठ । 3. 3ः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक। सुरदीरधिकोकनकुंभ भरों। तव पादपद्मतर धार करों॥