________________
bo
-
-
भुक्तमुक्त दातार लखि, वदों तनमन उक्त ॥१॥
तोटक। जय केवलभान अमान धर्ग । मुनिस्वच्छसरोजविकासकरं ॥भवसंकट भंजन लायक है। मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं ॥ २॥ धनधातव नंदवदीप्त भन । भविबोधत्रषातुरमेघधनं ॥ नित मंगलवृद चधायक है । मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं ॥३॥ गरभादिक मंगलसार धरे । जगजीवनके दुखदंद हरे ॥ सब तत्वप्रकाशन वायक हैं। मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं ॥४॥ शिवमारगमंडन तत्वकह्यो । गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो ॥ रुज रागरु दोष मिटायक हैं। मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं ॥ ५॥ समवस्रनमें सुरनार सही। गुनगावत नावत भालमही अरु नाचत भक्ति बढाय कहै । मुनिसुव्रत सुवृतदायक हैं ॥६॥ पगनूपुरकी धुनि होत भने । झननं झननं झननं झननं ॥ सुरलेत अनेक रमायक हैं । मुनिसुव्रत सुवृतदायक हैं ॥७॥ घननं घनन घन घंट बनें । तननं तननं तनतान सजें ॥ द्रिमद्री मिरदंग बजायक हैं । मुनिसुव्रत सुवृतदायक हैं ॥ ८॥ छिनमे लघु औ छिन थूल बनें । जुत हावविभाव विलासपने ॥ मुखतें पुनि यो गुनगायक हैं। मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं ॥६॥ धृगता धृगता पगपावत हैं सननं सननं सुनचावत हैं । अति आनंदको पुनि पायक हैं। मुनिसुव्रत सुवृतदायक है ॥१०॥ अपने भवको फल लेत सही। शुम भावनितें सब पाप दही ॥ नित ते सुखको सब पायक
tastettitutitutetitutetetetitutettetetitetituttitutiktatact