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___ॐ हीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निवपामीति स्वाहा ॥ श्रीफल अनार सु आम आदिक पक्कफल अति विस्तरों। सो मोक्ष फलके हेतु लेकर, तुम चरनआर्गे धरों शि०॥८॥ ___ॐ हीं श्रीमुनिसुयतजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥ जलगंध आदि मिलाय आठों, दरब अरघ सजों बरों। पूजौं चरनरज भगतिजुग, जाते जगत सागर तरों शिक्षा ___ॐ हीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अनर्ग्यपदप्राप्तये अर्घ निवपामीति स्वाहा ॥
पंचकल्याणक ।
तोटक। तिथि दोयज सावन श्याम भयो । गरभागममंगल मोद थयो । हरिवंद सची पितुमातु जजे। हम पूजत ज्यौं अघओघ भजे ॥१॥ ___ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीमुनिसुवतजिनेन्द्राय अर्घ नि० । वयसाख वदो दशमी वरनी । जनमें तिहिं द्यौस त्रिलोकधनी ॥
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