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हेमवरन तन वरप वर, नव्वै सहस सुआय ॥२॥
__ छंद तोटक (वर्ण १२) जय श्रीधर श्रीकर श्रीपति जी । जय श्रीवर श्रीभर श्रीमति जी ॥ भवभीमभवोदधि तारन है। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥३॥ गरभादिक मंगल सार धरे । जग जीवनिके दुखदंद हरे ॥ कुरवंशशिखामनि तारन हैं। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥ ४॥ करि राज छखंडविभूनिमई । तप धारत केवलबोध ठई ॥ गण तीस जहां भ्रमवारन हैं। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥३॥ भविजीवनिको उपदेश दियौ। शिवहेत सब जन धारि लियौ॥ जगके सब संकट टारन हैं। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥ ६॥ कहि वीसप्ररूपनसार तहां । निजशर्म
सुधारस धार जहां ॥ गति चार हपी पन धारन हैं। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥७॥ खट A फाय तिजोग तिवेद मथा। पनवीस कपा वसु ज्ञान तथा ॥ सुर संजमभेद पसारन है।
अरनाथ नमों सुखकारन हैं ।।८॥ रस दर्शन लेश्यय भव्य जुगं । खट सम्यक सैनिय भेद युगं ॥ जुग हार तथा सु अहारन हैं। अरनाथ नमों सुखकारन हैं ॥३॥ गुनथान चतुर्दश मारगना। उपयोग दुवादश भेद भना॥ इमि वीस विभेद उवारन हैं। अरनाथ नमों सुराकारन हैं ॥१०॥ इन आदि समस्त वखान कियो। भवि जीवननें उरधार लियौ ॥ कितने