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वर दीपं धूपं, आनन्दरूपं, लै फल भूपं, अर्घकर ॥ प्रभु० ___ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अनयंपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
पच कल्याणक
छद चौपाई (मात्रा १६)। फागुन सुदी तीज सुखदाई । गरभ सुमंगल ता दिन पाई ॥ मित्रादेवी उदर सु आये। जजे इंद्र हम पूजन आये ॥ १ ॥ ___ॐ ह्रीं फल्गुनशुक्लतृतीयायां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥१॥ मंगसिर शुद्ध चतुर्दशि सोहै । गजपुर जनम भयौ जग मोहै ॥ सुरगुरु जजे मेरुपर जाई । हम इत पूर्जे मनवचकाई ॥२॥ ____ॐ ह्री मार्गशीर्षशुक्लचतुर्दश्यां जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीधरनाशजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥२॥ मंगसिर सित चौदस दिन राजै। तादिन संजम धरे विराजै। अपराजित घर भोजन पाई। हम पूजे इत चित हरषाई ॥३॥