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सचि कियो जननी पद चचनं । हम करें इत ये पद अर्चनं ॥१॥
ॐ हीं भाद्रपदकृष्णसप्तम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्धं नि० ॥ जनम जेठ चतुर्दशि श्याम है । सकलइंद्र सु आगत धाम है। गजपुरै गज राज सबै तजै। गिरि जजे इत मैं जजि हो अबै ॥२॥ ___ॐ ही ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥२॥
भव शरीर सुभोग असार हैं । इमि विचार तबै तप धार हैं। भ्रमर चौदश जेठ सुहावनी। धरमहेत जजों गुन पावनी ॥ ३ ॥ ___ॐ ही ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां निःक्रममहोत्सवगण्डिताय स्त्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अर्ध नि० शुकलपोप दर्श सुखराश है । परम-केवल ज्ञान प्रकाश है ॥ भवसमुद्रउधारन देवकी । हम करें नित मंगल सेवकी ॥ ४ ॥
ॐ हीं गौपशुरूदशम्यां केवलशानप्राप्ताय श्रोशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥४॥ असित बौदस जठ हनं अरी। गिरि सभेदथकी शिव-ती वरी ॥
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