________________
tetottotattatotatotototatoketretottletetetetstatestatuttototet
जलज जीर सुखदास हीर हिम, नीर किरनसम लायो। पुंज धरत आनंद भरत भव,-दंद हरत हरषायो ॥ पर०॥३॥ ___ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ सुमन सुमनसम सुमनथालरम, सुमनवंद विहसाई।। सुमन-मथ-मद मधनके कारन, चरचों चरन चढ़ाई ॥पर०॥४॥ ___ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति ॥४॥ घेवर बोवर अर्द्ध चन्द्र सम, छिद्र सहस विराजै।
सुरस मधुर तासों पद पूजत, रोग असाता भाजै॥पर०॥५॥ 1 ॐ हीं अधीर्मनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥
सुदर नेह सहित वर दीपक, तिमिर हरन धरि आगै। नेह सहित गाऊं गुन श्रीधर, ज्यों सुबोध उर जागै॥पर०॥६॥ ___ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥