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वा अनुमोदन करै करावै पढे पाठ वर॥ ताके नित नव होय, सुमंगल आनंददाई। अनुक्रमः निरवान, लहै सामग्री पाई ॥१॥
___इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।
श्रीधर्मनाथ जिनपूजा।
माधवी तथा किरीट छंद ( ८ सगण व गुरु)। तजिके सरवारथ सिद्ध विमान, सुभानके आनि अनंद बढ़ाये। जगमातसुब्रत्तिके नंदन होय, भवोदधि डूबत जंतु कढाये ॥ जिनको गुन नामहिं माहिं प्रकाश है, दासनिको शिवस्वर्ग मँढाये। तिनके पद पूजनहेत त्रिबार, सुथापतु हों यह फूल चढ़ाये ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥१॥
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