SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीसज्जनचित्तवल्लभ सटीक । W wwwwwir a नोच २ कर खाजाते सोऐसा अपवित्र और घिनाव १२ 1435. www MSAPAAN ना शरीर रूप घर तिसे देखकर तुझे इससे चित्त में बिरक्तता नहीं होती सोवड़ा आश्चर्य है ॥ ८ ॥ दुर्गन्धंनवभिर्वपुः प्रवहतिद्वारैरिदं संततं तद्दृष्ट्रापिचयस्य चेतसिपुनर्निर्दे गतानास्तिचित् । तस्यान्यद्भुतविव. स्तुकीदृशमहो तत्कारणं कथ्यताम श्रीखंडादि भिरङ्गसंस्कृति रियंव्या ख्यातिदुर्गन्धताम् ॥ ६ ॥ ॥ भाषाटीका ॥ यह शरीर महा दुर्गंधित है फिर कैसा है यहशरीर नवद्वारों से ( दो नाक के द्वारोंसे रहेट दो श्रांखों के द्वारों से कीचड़ दो कानों के द्वारोंसे ठेंठ और एक मुहसे खखार और एक लिंगद्वारसे मूत्रवीर्य और एक गुदा द्वारसे मल) सदा पवित्र दुर्गंधित भरे है तिस को देखकर भी जिसके चित्तमें यदि ऐसे शरीर से विराग ता (उदासीनता) नहीं है तो कहिये. भूमण्डल पर और कौनसी वस्तु ऐसी होगी कि जो तिसको बिरागता
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy