________________
... [८५
आदि पापों से स्वतः ही बचाव हो जाता है। कई ब्राह्मण पुजारियों ने मंदिरों में दी जाने वाली बलि को बंद करा दिया है। उन्होंने यह कह कर हिंसा रुकवा दी कि अभी मेरे रहते मिष्ठान्न का भोग लगने दो। मेरे न रहने के बाद जो चाहो करना । ऐसी बात वही कह सकता है जिसमें मांसभक्षण की लालसा न हो । वास्तव में भोग की लालसा न हो तो हिंसा जैसे अनेक बड़े-बड़े पापों से पिण्ड छूट जाए।
. इस प्रकार भोगोपभोग के साथ पापों का अनिवार्य संबंध है। भोगोपभोग की लालसा जितनी तीव्र होगी, पाप भी उतने ही तीव्र होंगे। अतएव जो साधक पापों से बचना चाहता है उसे भोगोपभोग के साधनों में कमी करनी
चाहिए । कमी करने का अच्छा उपाय यही है कि उनका परिमाण . निश्चित कर लिया जाय और धीरे-धीरे यथायोग्य उसमें भी कमी की जाय ।
ऐसा करने वाला स्वयं ही अनुभव करने लगेगा कि उसके जीवन में शान्ति बढ़ती जा रही है, एक प्रकार की लघुता और निराकुलता आ रही है ।
भोगोपभोग के दो प्रकार बतलाए गए हैं, यथा(१) भोजन संबंधी, जैसे खाना पहनना आदि । (२) कर्म संबंधी। . .. ... किसी भुक्तभोगी ने ठीक ही कहा हैपेट राम ने बुरा बनाया, खाने को मांगे रोटी। . पड़े पाव भर चून पेट में, तब फुर के बोटी बोटी ।।
भोगोपभोग की प्रवृत्ति के वशीभूत होकर मनुष्य ऐसे करतापूर्ण कार्य कर डालता है कि जिनमें पशु-पक्षियों की हत्या होती है । भोगोपभोग की लालसा की बदौलत ही मनुष्य रक्त की धाराएं प्रवाहित करता है। उसे पाप करते समय तो कुछ जोर नहीं पड़ता, हँसते-हँसते भयानक पाप कर डालता है, मंगर उनका फल भोगते समय भीषण स्थिति होती है । हम अनेक मानवों और मानवेतर प्राणियों को घोर व्यथा, अतिशय दारुण वेदन भागते और छट