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त्याग और तप की साधना से प्रमाद घटता है और प्रमाद के घटने से ज्ञान बढ़ता है । चारित्र की शोभा ज्ञान के बिना नहीं होती। ज्ञान और चारित्र का संगम ही सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग है । भूधरजी महाराज इन दोनों ही क्षेत्रों में अग्रसर थे । ....... . . . . . . . . .
एक बार भूधर जी महाराज का. इन्दौर की ओर विहार हुआ। उस . काल में किसी दुकान पर खुले रूप में प्रवचन करने का प्रचलन था। जिस गांव के प्रांगण में वे प्रवचन कर रहे थे, वहां होकर कुछ सैनिकों के साथ एक सेना‘धिकारी निकला । मुनि के प्रवचन को सुनने की उत्कंठा से वह ठिठका । कुछ वाक्य कानों में पड़े तो रुक गया और आगे सुनने को उत्सुक हुआ। उनके ज्ञानपूर्ण भाषण से वह बहुत प्रभावित हुआ । उसके चेहरे पर जिज्ञासा की
रेखाएं देख कर मुनिराज ने कहा-क्या कुछ पूछने की इच्छा है ? ..: वह अधिकारी : जोधपुर के श्रीभण्डारी थे। मुनिराज के प्रश्न को
सुनते ही उन्हें एक नवीन कल्पना आई। बात यह थी कि वे दिल्ली. बादशाह के यहां काम करते थे, उसकी शाहजादी गर्भवती हो गई थी। भंडारी जी ने कहा था-कोई दैवी कारण होगा लड़की ऐसी गलती नहीं कर सकती ? उनका यह विचार कहां तक सत्य है या नहीं, इस विषय में मुनिराज के मुख से वे जानना चाहते थे । अतः उन्होंने मुनिराज से पूछा-'क्या पुरुष के साथ संभोग किये बिना भी कोई स्त्री गर्भवती हो सकती है ? .
भूधर जी स्वामी ने उत्तर दिया-हाँ, ऐसा हो सकता है । गर्भाधान का एक कारण पुरुष संयोग ही नहीं है । भगवान् महावीर ने उसके पांच कारण अन्य भी बतलाए हैं । गर्भ पुरुष के संयोग से है. अथवा अन्य कारण से, इसकी परीक्षा भी की जा सकती है। . . . . . . . . ..
विज्ञान ने आज अन्वेषण की कुछ बातें जगत् के समक्ष रक्खी हैं किन्तु महर्षियों ने पहले ही उनका चिन्तन कर लिया था। .:. स्नान करते समय जल में मिले हुए वीर्य के पुद्गल स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कर सकते हैं । पुरुषों के बैठने के स्थान में रहे हुए वीर्य-पुद्गल, यदि